Saturday, January 29, 2011

दिल तो बच्चा है जी

फिल्म समीक्षा

‘दिल तो बच्चा है जी’ थोड़ा सच्चा है जी

धीरेन्द्र अस्थाना

मधुर भंडारकर ऐसा सिनेमा बनाने के कारण चर्चित हुए हैं जो अर्थपूर्ण तथा यथार्थवादी भी है और बाजार में भी टिकता है। ‘ट्रैफिक सिग्नल‘, ‘कॉरपोरेट‘, पेज थ्री‘, ‘फैशन‘ उनकी व्यावसायिक रूप से सफल गंभीर फिल्में हैं। इस बार उन्होंने एक कॉमेडी फिल्म बनाने की ठानी थी। लेकिन हुआ यह कि जैसे एक साहित्यकार गुलशन नंदा या प्रेम वाजपेयी की तरह के उपन्यास नहीं लिख सकता वैसे ही मधुर भंडारकर भी वैसी कॉमेडी नहीं बना सके जो हिट होती है। उन्होंने कॉमेडी के भेष में एक गंभीर फिल्म बना दी है और यह इस रूप में अच्छा ही हुआ कि अब ‘मीनिंगफुल सिनेमा’ के दर्शकों को ‘एक संजीदा निर्देशक की विदाई का खतरा’ नहीं रहा। ‘दिल तो बच्चा है जी’ एक कमाल की सच्ची और अच्छी फिल्म है। फिल्म की कहानी में ताजगी है। कहानी के तीन आयाम हैं। तीन दिल तन्हा हैं। एक को सच्चे प्रेम की तलाश है, यानी ओमी वैद्य। दूसरे को तलाक के बाद फिर से घर बसाना है, यानी अजय देवगन। तीसरा दैनिक लड़कीबाजी से थककर ‘जेनुइन लव’ की खोज में एक जगह रुकता है, यानी इमरान हाशमी। तीनों दिल बेआवाज टूट जाते हैं। फिल्म को कॉमेडी का टच देने के लिए तीनों ‘बच्चे दिल’ फिर से रोमांस के भंवर में प्रवेश करते दिखाए गए हैं। लेकिन फिल्म का मूल स्वर यही उभर कर आता है कि आज की व्यापारिक और गलाकाट दुनिया में सब एक दूसरे का इस्तेमाल भर कर रहे हैं। प्यार एक छलावा है। इमोशन एक अत्याचार है। रिश्ता एक समझौता है। अजय देवगन एक बैंक के लोन मैनेजर हैं जो अपनी पत्नी से तलाक के बाद अपने मां-बाप (स्वर्गीय) के बड़े से बंगले में रहने आते हैं। एकांत से बचने के लिए वह ओमी वैद्य और इमरान हाशमी को बतौर पेइंग गेस्ट रख लेते हैं। कालांतर में तीनों दोस्त बन जाते हैं और अपनी अपनी प्रेम कहानियों में डूबते-उतराते हैं। इन तीनों दिलों की धड़कन बनी हैं श्रुति हसन, श्रद्धा दास और शहजहान पद्मसी। फिल्म के सभी कलाकारों ने बेहतर अभिनय किया है। इस फिल्म में भी ओमी वैद्य की धड़कन बनी श्रद्धा दास के चरित्र के माध्यम से मधुर भंडारकर ने ग्लैमर र्वल्ड के पीछे का संघर्ष और अंधेरा दिखा ही दिया है। ओमी वैद्य का चरित्र फिल्म की गंभीरता में ‘कॉमिक रिलीफ’ की तरह है। उनकी ‘हिंग्लिश पोयेट्री’ दिलचस्प है और सच्चे प्रेम को लेकर उनकी तड़प भली-भली सी लगती है। अपने दिल फेंक चरित्र की निरर्थकता के अहसास को इमरान हाशमी ने सशक्त अभिव्यक्ति दी है। 48 साल के किरदार अजय देवगन जिस तरह अपने से 17 साल छोटी युवती के प्रेम में पड़ते हैं और टूटते हैं, वह इमोशन जीवंत रूप में घटित हुआ है। अभिनय, निर्देशन, कथा और गीत-संगीत के स्तर पर ‘दिल तो बच्चा है जी’ एक साफ सुथरी और उम्दा फिल्म है। सिनेमा के आम दर्शक शायद इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले पाएंगे।
निर्देशक: मधुर भंडारकर
कलाकार: अजय देवगन, इमरान हाशमी, ओमी वैद्य, श्रद्धादास, श्रुति हसन, शहजहान पद्मसी
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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