Saturday, December 11, 2010

नो प्रॉब्लम

फिल्म समीक्षा

’नो प्रॉब्लम‘ में प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम

धीरेन्द्र अस्थाना

सबसे ज्यादा दुख यह देख कर हुआ कि पांच ऐसे सितारे जिनकी फिल्में देखना दर्शक पसंद करते हैं और जो अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं, उनके सामने ऐसी क्या प्रॉब्लम थी, जो उन्हें ’नो प्रॉब्लम‘ जैसी फिल्म में काम करना पड़ा। दूसरा दुख यह देखकर हुआ कि जिस निर्देशक को कॉमेडी का सरताज कहा जाता है वह अपनी नयी फिल्म में कॉमेडी का ककहरा भी नहीं रच सका। तीसरा दुख शाश्वत और फिल्म इंडस्ट्री के जन्म से चला आ रहा है। वह यह कि एक से एक काबिल और कल्पनाशील निर्देशक नायाब पटकथाएं लेकर दर-दर भटकते रहते हैं मगर उन्हें निर्माता नहीं मिलते तो नहीं ही मिलते। जिसके संपर्क हैं, नाम है या खानदान है वह कुछ भी बना कर करोड़ों रुपये पानी में गला देता है। इस फिल्म में भी पैसा पानी की तरह बहाया गया है और पानी में ही बहाया गया है। क्या ग्लैमर और वैभव की इस फिल्म नगरी में अस्तित्व को लेकर सचमुच इतनी गहरी असुरक्षा है कि बड़ा से बड़ा एक्टर भी अपनी इमेज के बारे में कुछ नहीं सोचता, बस काम करने लगता है, फिर चाहे पटकथा कैसी भी हो! और ’नो प्रॉब्लम‘ में तो कोई कहानी ही नहीं है। फिल्म की कोई सीधी, सुचिंतित पटकथा नहीं है। वह कहीं से भी कैसे भी घटने लगती है। और किसी भी घटना का कोई औचित्य या तर्क भी नहीं है। संजय दत्त और अक्षय खन्ना दो लुटेरे हैं। परेश रावल एक गांव का बैंक मैनेजर है। दोनों परेश का बैंक लूटकर डरबन भाग जाते हैं। परेश उन्हें ढूंढने डरबन आता है। सुनील शेट्टी एक बड़ा लुटेरा व गैगस्टर है। अनिल कपूर एक सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर है जिसकी पत्नी सुष्मिता सेन को दिन में एक बार पागलपन का दौरा पड़ता है। इस दौरे के दौरान वह अनिल कपूर को मारने का प्रयत्न करती है। कंगना रानावत सुष्मिता की छोटी बहन है जो अक्षय खन्ना को पसंद करती है। दोनों पुलिस कमिश्नर की बेटियां हैं। नीतू चन्द्रा सुनील शेट्टी के साथ है। इस कथा विहीन फिल्म में चंद नकली परिस्थितियां खड़ी करके दर्शकों को हंसाने का जबरन प्रयास किया गया है। फिल्म में अधनंगी लड़कियों की भरमार है। डांस है, ड्रामा है, एक्शन है, कॉमेडी है, गाना है, लेकिन सब कुछ सिर्फ तानाबाना है। इस ताने बाने से कथ्य नदारद है, तथ्य नदारद है और लक्ष्य नदारद है। फिल्म के सभी पात्र विदूषकों के चोले में हैं। सब के सब मंजे हुए कलाकार हैं और अपनी तरफ से हंसाने का भरपूर प्रयत्न भी करते हैं लेकिन हंसने का भी तो एक तर्क और कारण होता है। जब वह कारण ही नहीं है तो दर्शक क्यों हंसेगा? जहां-जहां हंसी का कार्य-कारण तत्व उपस्थित होता है। वहां-वहां दर्शक न सिर्फ हंसते हैं, बल्कि खुलकर हंसते हैं। हंसाने की इस भूमिका का सबसे अच्छा निर्वाह परेश रावल ने ही किया है। एक अच्छी, सुचिंतित, तार्किक पटकथा के अभाव में कैसे कुछ बेहतरीन सितारे अपने सफर में प्रॉब्लम खड़ी कर लेते हैं, इसका दिलचस्प उदाहरण है ’नो प्रॉब्लम।‘

निर्देशक: अनीस बज्मी
कलाकार: अनिल कपूर, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, सुनील शेट्टी, परेश रावल, सुष्मिता सेन, कंगना रानावत, नीतू चंद्रा, शक्ति कपूर
संगीत: साजिद-वाजिद, प्रीतम, आनंद राज आनंद

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