Saturday, July 31, 2010

वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई

फिल्म समीक्षा

वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई

सत्तर की मुंबई में माफिया

धीरेन्द्र अस्थाना

मुंबई के माफिया राज या अंडरवल्र्ड पर आधारित जो तीन चार बेहतर फिल्में हिंदी सिनेमा के पास हैं उनमें एक और का इजाफा हो गया है। टीवी क्वीन एकता कपूर लगता है सिनेमा की साम्राज्ञी भी बन कर रहेंगी। पहले छोटे बजट की आॅफ बीट लेकिन सफल फिल्म ‘लव सेक्स और धोखा‘ बना कर खुद को प्रमाणित किया और अब बड़े बजट की सुपरहिट मसाला फिल्म बना कर बाजार में भी अपना सिक्का चलवा दिया। बहुत दिनों के बाद सिनेमाघरों में भारी भीड़ दिखाई पड़ी। सत्तर के समय की मंुबई को अनुभव करने के लिए युवा दर्शक उमड़ पड़े। मिलन लूथरिया का निर्देशकीय कौशल करिश्मा कर गया। उन्होंने सचमुच सातवें दशक की मुंबई के सामाजिक और आपराधिक ताने-बाने का बेहतरीन पाठ पेश किया है। निर्माण के समय खबरें आती थीं कि एकता कपूर बहुत दखलंदाजी कर रही हैं लेकिन फिल्म देखने के बाद महसूस हुआ कि यह दखलंदाजी कितनी रचनात्मक और सकारात्मक रही। फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है। संवाद चुटीले और संगीत कर्णप्रिय है। केवल प्रमुख पात्रों पर ही नहीं फिल्म के प्रत्येक चरित्र के लुक, कपड़ों, हेयर स्टाइल और अंदाज पर बहुत मेहनत की गयी है। एक पंक्ति में कहना हो तो ‘वन्स अपाॅन ए टाइम इन मुंबई‘ सत्तर के समय में खड़ी दो हजार दस की चेतना है जिसके जरिए हम माफिया राज की नैतिक दीवारों पर मनुष्य विरोधी अनैतिक खिड़कियां खुलते देखते हैं। बीतते हुए और आते हुए डाॅन के इस द्वंद्व को बेहद स्पष्ट और तल्ख अंदाज में पेश करके मिलन लूथरिया ने इसे नये युग के माफिया विमर्श में बदल दिया है। और इस विमर्श को बेहद काबिल, विश्वसनीय, जीवंत तथा यादगार अनुभव में ढाला है इसके पांचों प्रमुख कलाकारों ने। अजय देवगन, इमरान हाशमी, कंगना रानावत, प्राची देसाई और रणदीप हुडा ने अपने किरदारों को अपने अभिनय से एक सिनेमाई पाठ में बदल दिया है। फिल्म में राजनीति और अपराध की दुरभिसंधियों की आहटों को भी जगह दी गयी है। तबाही, बम धमाकों, ट्रेन विस्फोटों, जहरीली शराब, ड्रग्स वगैरह के जिस खौफनाक ज्वालामुखी पर आज की मुंबई बैठी है उसकी रचना कौन से समय में और किन सपनों को पूरा करने की चाहत में हुई थी यह जानने-समझने के लिए नयी पीढ़ी को यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए। ऐसी फिल्मों में हीरोईनों के लिए खास ‘स्पेस‘ नहीं होता तो भी दोनों अभिनेत्रियों - कंगना तथा प्राची - ने अपना जलवा दिखाया है। कंगना के लिए तो यह शायद उसकी चुनी हुई फिल्मों में से एक बनेगी। गीत-संगीत भी सातवें दशक का जादू जगाते हैं।

निर्माता: एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक: मिलन लूथरिया
कलाकार: अजय देवगन, इमरान हाशमी, कंगना रानावत, प्राची देसाई, रणदीप हुडा।
गीत: इरशाद कामिल
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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