Saturday, July 24, 2010

खट्टा मीठा

फिल्म समीक्षा

भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध ‘खट्टा मीठा‘

धीरेन्द्र अस्थाना

इस बार प्रियदर्शन और अक्षय कुमार की जोड़ी ने काॅमेडी में इमोशन और मूल्यों का तड़का लगा कर एक ‘मीनिंगफुल‘ फिल्म बनाने की कोशिश की है। प्रियदर्शन ने फिल्म को भ्रष्टचार और भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध जंग का ऐलान बनाने का प्रयास किया है लेकिन यह प्रयास ‘कन्फ्यूजन‘ का शिकार हो गया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई एक गंभीर मुद्दा है जिसे काॅमेडी के औजारों से नहीं लड़ा जा सकता। इंटरवल तक फिल्म तो भी एक उम्मीद से जोड़े रखती है कि शायद यह भ्रष्ट तंत्र पर एक गहरा तंज साबित होगी लेकिन इंटरवल के बाद जब फिल्म बिखरना शुरू होती है तो बिखरती ही जाती है। फिल्म में कई उप कथाएं जोड़ दी गयी हैं जिनकी बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी। ये उपकथाएं मूल फिल्म को भटकाव की सड़क पर फिसला देती हैं। असरानी वाला प्रसंग एकदम गैरजरूरी है और अक्षय के रोड रोलर वाला प्रसंग जरूरत से ज्यादा लंबा तथा उबाऊ हो गया है।
मूल रूप से प्रियदर्शन कहना यह चाहते थे कि भ्रष्टाचार, अनाचार और अनैतिकता के दलदल में आकंठ डूबे एक तंत्र में ईमानदारी तथा मूल्यों की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। जो लड़ने का प्रयास करेगा वह एक दर्दनाक मौत मरेगा। (फिल्म में मकरंद देशपांडे की हत्या) इस तंत्र में जो सच्ची बात करेगा वह अकेला पड़ जाएगा और भूखा मरेगा (फिल्म में अक्षय कुमार का चरित्र)। यहां तक ही कहानी रहती तो बेहतर था। लेकिन एक सकारात्मक अंत दिखाने की चाहत में कुछ आतर्किक दृश्यों के दम पर फिल्म में सच्चाई की विजय और भ्रष्टाचार की पराजय के ‘नोट‘ पर फिल्म का अंत किया गया। इसे हम एक पवित्र मंशा भले ही कहें लेकिन यह मंशा ढंग से पर्दे पर नहीं उतर सकी। अक्षय कुमार के अपोजिट दक्षिण की जिस हीरोइन तृषा को उतारा गया उसमें जरा भी दम नहीं है। न तो वह ग्लैमरस है न ही समर्थ अभिनेत्री। पूरी फिल्म केवल और केवल अक्षय कुमार के कौशल और अंदाज की है जिसमें वह सौ प्रतिशत कामयाब हुए हैं। अगर आप अक्षय कुमार के प्रशंसक हैं तो फिल्म आपको कम से कम अक्षय के अभिनय के स्तर पर निराश नहीं करेगी। लंबी फिल्म है। कम से कम आधा घंटा छोटा करके एक कसी हुई फिल्म बनायी जा सकती थी। तो भी एक बार तो दर्शक फिल्म देखने जाएं ही क्योंकि फिल्म बोर नहीं करती।

निर्देशक: प्रियदर्शन
कलाकार: अक्षय कुमार, तृषा, मकरंद देशपांडे, राजपाल यादव, मिलिंद गुणाजी, अरुणा ईरानी, कुलभूषण खरबंदा, असरानी
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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