Saturday, May 15, 2010

बम बम बोले

फिल्म समीक्षा

गरीबी का ग्लोबल आख्यान ‘बम बम बोले‘

धीरेन्द्र अस्थाना

जब भारत के महान फिल्मकार सत्यजित रे विश्व के स्तर पर सराहे जाते थे तो बाॅलीवुड का एक वर्ग चिल्लाता था, ‘रे साहब भारत की गरीबी बेच रहे हैं।‘ लेकिन ये अपने प्रियदर्शन बाबू तो शुद्ध रूप से ‘मेनस्ट्रीम सिनेमा‘ के सरताजों में से हैं। ये तो मनोरंजक, कमर्शियल और मुख्य धारा का सिनेमा बनाते हैं। तो इनकी बनायी ‘बम बम बोले‘ को क्या कहें? एक तथाकथित अमीर देश के सचमुच के गरीब हिस्से का मार्मिक बाइस्कोप है यह। कह सकते हैं कि गरीबी का ग्लोबल आख्यान है क्योंकि ‘टैरर‘, ‘आतंकवादी‘ आदि शब्दों-गतिविधियों के जुड़ते ही मामला लोकल से सीधे अंतरराष्ट्रीय हो जाता है।
दिल-दिमाग को (झकझोर देने वाली नहीं), अवसादग्रस्त कर देने वाली इस फिल्म को क्या परिभाषा दें? बच्चों के संदर्भ में फिल्में दो तरह की होती हैं। पहली तरह की फिल्में होती हैं ‘बच्चों के लिए‘ जैसे ‘हनुमान रिटन्र्स‘, ‘मकड़ी‘, ‘जजंतरम ममंतरम‘, ‘ब्लू अंब्रैला‘ और ‘घटोत्कच‘ आदि। दूसरी तरह की फिल्में होती हैं ‘बच्चों के बारे में‘ जैसे ‘तारे जमीन पर‘ जो दर्शील सफारी के बाल मन और समस्याओं पर बनी बेजोड़ फिल्म है। लेकिन दर्शील सफारी के ही बेहतर अभिनय से सजी ‘बम बम बोले‘ न तो बच्चों के लिए है, न ही बच्चों के बारे में है। ईरानी निर्देशक माजिद मजीदी की चर्चित फिल्म से प्रेरित ‘बम बम बोले‘ एक गंभीर फिल्म है जो एक गरीब मेहनतकश अतुल कुलकर्णी तथा उसकी कर्मठ व संतोषी पत्नी ऋतुपर्णा सेन गुप्ता की फटेहाली और वंचित-अपमानित जीवन का मर्मस्पर्शी विमर्श पेश करती है। इस बदहाल जीवन में दर्शील सफारी और जिया वस्तनी के मासूम बचपन को उपस्थित कर के प्रियदर्शन ने एक खतरनाक सवाल पूछा है -‘खुशहाली, उन्नति, बदमाशी, बेईमानी, चोरी-डकैती, अन्याय, पांच सितारा जीवन संस्कृति, माफिया राज आदि-आदि के मौजूदा समय में ‘मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई और मासूमियत‘ का ‘स्पेस‘ कितना है और कहां है?‘ स्कूल जाने के लिए, दो भाई बहनों का एक ही फटा-पुराना जूता अदल बदल कर पहनना और फिर जूतों को लेकर फंतासी दृश्य ही रच देना प्रियदर्शन की कल्पनाशीलता का अदभुत उदाहरण है। फिल्म में दर्शक नहीं थे। जाहिर है कि आज के अतार्किक, नाच गानों और सेक्स से भरपूर ‘काॅमिक सिनेमाई समय‘ में असुविधाजनक सवालों से कौन टकराना चाहेगा?

निर्देशक: प्रियदर्शन
कलाकार: दर्शील सफारी, जिया वस्तनी (होनहार बिरवान के होत चीकने पात / बधाई हो, बहुत आगे जाना है), अतुल कुलकर्णी, ऋतुपर्णा सेन गुप्ता
संगीत: अजान सामी, तापस रेलिया, एम जी श्रीकुमार

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