फिल्म समीक्षा
भव्य लेकिन निस्तेज ‘एसिड फैक्ट्री‘
धीरेन्द्र अस्थाना
निर्माता संजय गुप्ता की लंबे समय से मीडिया में छायी हुई फिल्म ‘एसिड फैक्ट्री‘ दर्शक जुटाने में कामयाब नहीं हो सकी। संजय गुप्ता की फिल्में बहुत खर्चीली, भव्य, चकाचैंध में डूबी और तेज गति की होती हैं। यह भी वैसी ही फिल्म है। इस कदर ‘एक्शन पेक्ड‘ की कहानी के बारे में सोचने की मोहलत भी न मिले। इस फिल्म से दीया मिर्जा भी स्टंट कर सकने वाली हीरोईनों में शुमार हो गयी हैं। लेकिन फिल्म के अंत में उनका विलेन का किरदार स्थापित हुआ है जो बतौर हीरोईन उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।
फिल्म में एक साधारण सी कहानी यह है कि फरदीन खान, मनोज बाजपेयी, दीनो मोरिया, आफताब शिवदासानी, डैनी डेनजोंग्पा और दीया मिर्जा एक फैक्ट्री में बेहोश पड़े हैं। सबसे पहले फरदीन खान को होश आता है फिर एक-एक कर बाकी सब को। ये लोग एक ‘एसिड फैक्ट्री‘ में बंद हैं। तमाम लोगों की याद्दाश्त चली गयी है। सब एक-दूसरे पर शक कर रहे हैं। बीच-बीच में एक फोन आता है जो इरफान खान का है। उस फोन से पता चलता है कि फैक्ट्री में बंद कुछ लोग इरफान खान के बंदे हैं और दो लोग बंधक हैं। उनमें से एक बंधक बिजनेसमैन सार्थक है जिसकी पत्नी से तीस मिलियन डाॅलर वसूल कर इरफान खान फैक्ट्री की तरफ आ रहा है। पुलिस उसके पीछे है। पुलिस के साथ इरफान खान की लोमहर्षक मुठभेड़ है जिसमें कई दर्जन कारों को तोड़ा फोड़ा गया है। इधर फैक्ट्री के भीतर एक घटनाक्रम के तहत सबको क्रमशः याद आता है कि वह कौन है और कैसे बेहोश हुआ था। सिर्फ फरदीन खान है जो पुलिस आॅफीसर है। वह इरफान खान का नेटवर्क तोड़ने के लिए उसके गैंग में शामिल हुआ था। लेकिन यह बात फैक्ट्री में बंद किसी भी अपराधी को पता नहीं। इस बीच पुलिस को झांसा देकर इरफान खान ‘एसिड फैक्ट्री‘ में आ पहुंचता है। वह घोषणा करता है कि हममें से कोई पुलिस का आदमी है। थोड़ी बहुत नाटकीयता के बाद खुलासा हो जाता है कि फरदीन खान ही पुलिस अधिकारी है। भयानक मारधाड़ चलती है। फरदीन एसिड सिलेंडरों को गोलियों से उड़ा कर बाहर भाग जाता है। दमघोंटू गैस के फैलने से अपराधी फिर बेहोश हो जाते हैं। तभी पुलिस आ जाती है और पिक्चर का ‘दी एंड‘ हो जाता है। सार्थक और उसकी पत्नी का पुनर्मिलन हो जाता है। दीया मिर्जा समेत बाकी सबको पुलिस पकड़ कर ले जाती है। फिल्म ‘सत्या‘ के बाद पहली बार मनोज वाजपेयी ने बहुत दमदार और यादगार अभिनय किया है। गीत-संगीत साधारण है तो सिनेमेटोग्राफी अद्भुत है।
निर्माता: संजय गुप्ता
निर्देशक: सुपर्ण वर्मा
कलाकार: फरदीन खान, इरफान खान, मनोज वाजपेयी, दीनो मोरिया, आफताब शिवदासानी, डैनी डेनजोंग्पा, दीया मिर्जा
संगीत: शमीर टंडन, रंजीत बारोट, मानसी, बप्पा लाहिरी
Saturday, October 10, 2009
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sahbdon ka sanjal hota hai samiksha mein....atul kushwaha
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