Tuesday, June 25, 2013

रांझना

फिल्म समीक्षा

राजनीति की बलिवेदी पर ‘रांझना‘

धीरेन्द्र अस्थाना

यह जो अजब गजब सी ‘रांझना‘ है न, यह आधी दिल की और आधी दिमाग की फिल्म है। इंटरवल तक दर्शक खुश हो रहे थे, हंस रहे थे, धनुष की एक्टिंग और उसके द्वारा बोले जा रहे संवादों पर मोहित हो रहे थे, रहमान के संगीत पर झूम रहे थे। वे सब इंटरवल के बाद ऐसे खामोश हुए मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो। अच्छी खासी दिलदार और युवा प्यार की सहज और दिलचस्प ही नहीं ताजा और जिंदादिल कहानी भी अचानक बनैली राजनीति के बीहड़ में घुस गयी। लव स्टोरी सहसा ही हेट स्टोरी में रूपांतरित हो गयी। दिल्ली के अरविंद केजरीवाल की ‘आप‘ पार्टी से प्रभावित होकर चुनावी राजनीति में प्रवेश कर गयी। सहज पटकथा जटिल स्क्रीन प्ले में उतर गयी। तो दर्शकों को स्तब्ध होना ही था। अठारह से चौबीस की उम्र के लड़के-लड़कियां धनुष और सोनम के रूप में अपने खुद के टपोरीपन को देखने-जीने सिनेमा हाल पहुंचे थे। और उन्हें थमा दी गयी राजनीति और रिवेंज की एडल्ट पोथी। पता नहीं निर्देशक ने ऐसा क्यों किया। आम दर्शक प्यार को प्यार की तरह देखना पसंद करते हैं, वह प्यार में रंजिश का विमर्श नहीं चाहते। निर्देशक के बौद्धिक आग्रहों के चलते बनारस की तंग गलियों में पनपते टपोरी प्यार की कहानी दिल्ली के जेएनयू जैसे पढ़ाकू और दिमागी इलाके में राजनीति की बलिवेदी पर कुर्बान हो गयी। फिल्म देखने के बाद अब यह सवाल जरूर उठेगा कि अपने हिंदी सिनेमा में जो युवा ब्रिगेड है उसमें धनुष जैसे सहज और मायावी एक्टर को कौन टक्कर दे सकता है। शायद केवल रणबीर कपूर। धनुष ने एक्टिंग के झंडे गाड़ दिए हैं ‘रांझना‘ में। इंटरवल तक सोनम कपूर ने भी कमाल रचा है पर्दे पर लेकिन उसके बाद जिस तरह उसके किरदार ने यू टर्न लिया है उसे साकार करने में वह भी फिल्म की तरह लड़खड़ा जाती हैं। सिर से पांव तक सोनम के प्यार में डूबे धनुष के स्कूटर की पिछली सीट पर बैठी सोनम जब उसे अपने अभय देओल से प्यार हो जाने की कहानी सुना रही होती हैं और धनुष स्कूटर को सीधा गंगा नदी की गोद में ले जाता है, वह उसके प्यार में बिखर जाने की यादगार स्थिति बन जाती है। फिल्म में ऐसे कई अजब-गजब दृश्य हैं जिन्होंने उसे एक नयी तरह की ऊंचाई दी है। यह प्यार के स्वर्ग और प्यार के नर्क की भी दास्तान मानी जा सकती है। मगर हिंदी के दर्शक अपने हीरो को मरता हुआ देखना पसंद नहीं करते। और ‘रांझना‘ में तो दोनों ही हीरो मर जाते हैं। पर फिल्म देख लेनी चाहिए। एक नया अनुभव हाथ लगेगा। 

निर्देशक: आनंद एल.राय
कलाकार: धनुष, सोनम, अभय देओल
संगीत: ए आर रहमान

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