Monday, May 13, 2013

गो गोवा गॉन


फिल्म समीक्षा

हंसते-हंसते हॉरर: गो गोवा गॉन

धीरेन्द्र अस्थाना

एक नये तरह के अनुभव की यात्रा पर ले जाने वाली फिल्म है ‘गो, गोवा, गॉन‘। कॉमेडी के चोले में हॉरर फिल्म का आस्वाद थोड़ा हटकर लेकिन रोचक है। जॉम्बी लोगों की दुनिया और हरकतों पर विदेशों में फिल्में बनती रहती हैं। हमारे यहां ड्राक्यूला पर कुछ फिल्में बनी हैं। सस्ते, फुटपाथिया उपन्यास तो सैकड़ों छपे हैं लेकिन ड्राक्यूला और जॉम्बी दो अलग बातें हैं। दोनों में सिर्फ एक ही चीज कॉमन है कि दोनों मनुष्य का खून पीकर अपनी भूख-प्यास मिटाते हैं। निर्माता के रूप में सैफ अली खान का नाम था तो जाहिर था कि फिल्म फालतू तो नहीं होगी लेकिन फिल्म की अनूठी कहानी सामान्य दर्शकों को कितनी पसंद आयेगी नहीं कह सकते। कुणाल खेमू, वीर दास, आनंद तिवारी तीन दोस्त हैं- फालतू, गैर जिम्मेदार टाइप के। एक को नौकरी से हटा दिया गया है दूसरे को उसकी गर्ल फ्रैंड ने छोड़ दिया है। तीसरा शरीफ टाइप का है लेकिन दोस्ती के चक्कर में फंसकर मुसीबतें बुलाता रहता है। पूजा गुप्ता नामक लड़की के जरिये इन्हें पता चलता है कि गोवा में कोई रेव पार्टी होने जा रही है, जिसे एक रशियन माफिया आयोजित कर रहा है। तीनों दोस्त पार्टी में पहुंच जाते हैं, जहां पूजा भी मिल जाती है। पार्टी रातभर चलती है लेकिन तभी एक ट्रे में हाईडोज वाला ड्रग बंटने आता है, जिसके एक कैपसूल की कीमत पांच हजार रुपये है। पूजा और इन तीनों दोस्तों के पास पैसा नहीं है, इसलिए ये चारों कैपसूल खाने से वंचित रह जाते हैं। सुबह तीनों दोस्त जहां-तहां पड़े मिलते हैं। इकट्ठा होकर पूजा को ढूंढ़ने दूर पहाड़ी पर दिख रहे कॉटेज में जाते हैं, जिसकी दीवारों पर जहां-तहां खून चिपका हुआ है। पूजा एक कमरे में छिपी हुई है। अब शुरू होता है हॉरर। पता चलता है कि रात की पार्टी में जितने भी डेढ़ दो सौ लोगों ने हाईडोज ड्रग लिया था, वे सब के सब खून पीने वाले जॉम्बी में बदल गये हैं और बीच (समुद्र तट) पर जहां-तहां भटक रहे हैं। ये सब मृत जैसे हैं। टेढ़े-मेढ़े होकर धीरे-धीरे चलते हैं और तभी नष्ट होते हैं, जब सीधे इनके भेजे पर गोली या धारदार हथियार मारा जाये। तीनों दोस्त और पूजा सैफ अली खान के साथ मिलकर कैसे इनसे अपनी जान बचाते हैं, इन्हें खत्म करते हैं और सही सलामत गोवा से वापस लौट आते हैं, यही इस फिल्म का रोमांच है। एक नया अनुभव पाने के लिए फिल्म देख सकते हैं, पैसे व्यर्थ नहीं जायेंगे। 

निर्देशक: कृष्णा डीके राज निदीमोरू
कलाकार: सैफ अली खान, कुणाल खेमू, वीर दास, आनंद तिवारी, पूजा गुप्ता
संगीत: सचिन/जिगर

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