Monday, November 21, 2011

शकल पे मत जा

फिल्म समीक्षा

‘शकल पे मत जा‘

अकल भी कहां है!

धीरेन्द्र अस्थाना

शुभ द्वारा निर्देशित ‘शकल पे मत जा‘ माइंडलेस कॉमेडी नहीं माइंड घर पे रख कर बनायी गयी फिल्म है। बॉलीवुड में भी अजब गजब गोरखधंधा है। प्रतिभाशाली लोग या तो सिनेमा बना नहीं पाते, बना लेते हैं तो उन्हें रिलीज के लिए सिनेमा हॉल नहीं मिलते, एकाध सिनेमा हॉल मिल जाता है तो दर्शक फिल्म देखने नहीं आते। दूसरी तरफ कॉमेडी के नाम पर प्रोड्यूसर भी मिल जाता है, डिस्ट्रीब्ूयटर भी मिल जाता है और दर्शक भी झूमते-झामते फिल्म देखने पहुंच जाते हैं। ‘शकल पे मत जा‘ मानव श्रम और धन की बरबादी की उम्दा और कारुणिक मिसाल है। हालांकि निर्देशक ने जरूर यह मुगालता पाल लिया होगा कि वह युवाओं को संबोधित एक आधुनिक और मजाकिया फिल्म बनाने में कामयाब है लेकिन असल में यह हास्यप्रद नहीं हास्यास्पद और बचकानी फिल्म है जिसे देखते हुए लगातार रोना आता रहता है। नये लड़कों और थोड़े से पैसों को लेकर बनायी गयी यह फिल्म असल में कुछ गलतफहमियों के कारण पैदा हुई अराजकता पर फोकस करते हुए एक निकम्मी और कम अक्ल सुरक्षा व्यवस्था पर चोट करना चाहती है लेकिन चोट करने की अकल न होने के कारण एक बेतुकी और बोर नौटंकी में बदल जाती है। सौरभ शुक्ला और रघुवीर यादव जैसे प्रतिभावान लोग इन फिल्मों में काम करके खुद अपने ऊपर गोली दाग रहे हैं। क्या बॉलीवुड में काम की बहुत कमी है? फिल्म की कहानी कॉलेज के तीन लड़कों के प्रोजेक्ट से शुरू होती है। चौथा हीरो का 13 साल का भाई है। प्रोजेक्ट के तहत एक डॉक्यूमेंट्री बनानी है - आतंकवादी गतिविधियों पर केंद्रित। शूटिंग के दौरान दिल्ली एयरपोर्ट पर एक जहाज की लेंडिंग को शूट करते हुए चारों पुलिस द्वारा धर लिए जाते हैं। इन चारों की हास्यास्पद ढंग से की जा रही जांच में ही पिचहत्तर प्रतिशत फिल्म खप जाती है। बाकी पच्चीस प्रतिशत में बताया जाता है कि एयरपोर्ट पर असली आतंकवादी भी मौजूद थे जो हवाईजहाज उड़ाना चाहते थे। चारों लड़के तो केवल इसलिए फंस गये क्योंकि अपनी शूटिंग में उन्होंने एयरपोर्ट के अलावा राष्ट्रपति और संसद भवन भी शूट किया था और बम बनाने, हवाई जहाज उड़ाने तथा आरडीएक्स पर चर्चा भी की थी। आखिर में हीरो द्वारा असली बम को डिफ्यूज करने के शॉट पर फिल्म खत्म होती है और नेरेशन द्वारा फिल्म की कहानी समझायी जाती है। फिल्म देखने की कोई वजह नहीं है। दो गाने अच्छे हैं लेकिन उनका फिल्मांकन कमजोर है।

निर्देशक: शुभ
कलाकार: शुभ, प्रतीक कटारे, सौरभ शुक्ला, रघुवीर यादव, आमना शरीफ, जाकिर हुसैन, चित्रक, प्रदीप काबरा, हर्षल पारेख, राजकुमार कनौजिया
संगीत: सलीम-सुलेमान

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