Tuesday, August 16, 2011

आरक्षण

विमर्श

बेमतलब है ‘आरक्षण’ पर बवाल

धीरेन्द्र अस्थाना


याद नहीं आता कि इससे पहले कोई फिल्म पुलिस के पहरे में देखी थी। पुलिस सिनेमा हॉल के भीतर भी थी और बाहर भी। फिल्म देखकर हॉल से बाहर निकलने के काफी देर बाद तक भी समझ नहीं आया कि प्रकाश झा की नयी फिल्म ‘आरक्षण’ में ऐसा क्या आपत्तिजनक है, जिस पर कुछ लोग बवाल मचा रहे हैं। प्रकाश झा अर्थपूर्ण सिनेमा बनाते आये हैं। फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब वह बड़ी स्टार कास्ट को लेकर बड़े बजट की फिल्म बनाते हैं। इसका एक लाभ यह हुआ कि अब उनके संदेशपरक सिनेमा को पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा दर्शक मिल जाते हैं, लेकिन केवल नाम को लेकर जो हंगामा मचाया गया उससे दर्शक डर गये और इस कारण इस सार्थक फिल्म को देखने उस मात्रा में नहीं आये, जिसका अनुमान लगाया गया था। पंजाब, आंध्र और यूपी में फिल्म पर प्रतिबंध है। तीन प्रदेशों के दर्शक एक विचारोत्तेजक और संवेदनशील फिल्म को अकारण नहीं देख पाएंगे, जबकि इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हों। फिल्म अमिताभ बच्चन के माध्यम से यह संदेश देती है कि शिक्षा का हक सभी को है। अमिताभ आरक्षण को समय की मांग मानते हैं और अपने विचारों के समर्थन में अपनी नौकरी, अपना घर गंवाकर भी खड़े रहते हैं। मिथिलेश सिंह यानी मनोज वाजपेयी के माध्यम से फिल्म यह संदेश देती है कि उनके जैसे धनलोलुप लोग किस तरह ऊंची शिक्षा का लाभ एक मलाईदार तबके तक सीमित रखान चाहते हैं कि कैसे देश में कोचिंग क्लासेज के जरिये शिक्षा का व्यापारीकरण कर दिया गया है। फिल्म सैफ अली खान के माध्यम से संदेश देती है कि कैसे एक जाति विशेष में जन्म लेने के कारण उसे कदम-कदम पर अनाचार का दंश झेलना पड़ता है। फिल्म कहीं से भी आरक्षण के पक्ष या विपक्ष में नहीं है। देश में मौजूद एक ज्वलंत मुद्दे पर विमर्श करने वाली फिल्म को नाहक ही राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है। अगर कुछ गलत होता तो भला सेंसर बोर्ड फिल्म को हरी झंडी क्यों देता? फिल्म के सभी कलाकारों से प्रकाश झा ने बेहतर काम लिया है। दुख है कि अश्लील फिल्मों का कोई विरोध नहीं होता मगर गंभीर विमर्श को खारिज किया जाता है। एक नाजुक मुद्दे पर पूरी फिल्म एक सार्थक और साझा सहमति बनाना चाहती है लेकिन साझा सहमति चाहता कौन है।

1 comment:

  1. sensor board ka kaam kuch aur hain aur Govt auth. ka kuch aur. Sensor board kitna seriously kaam karta hai ye sabhi jante hain. Jin sensor board members ne ye film pass ki thi unme kitne kanoon ke jankar the, kitne reserved class ke the. Apko syad maloom nahi ki reserved class se jude kisi bhi mudde pur charcha ya decision ke liye usme reserved class ka representation hona aavashayak hai. aagar film me aarakshan ke paksh ya vipaksh meiin kuch nahi hai to phir iska naam Aarakshan rakha hi kyon gaya hai??????? siksha bhi ho sakta tha. Reservation ke maine ek reserved category se juda banda hi bata sakta hai dogale unreserved nahi.

    ReplyDelete