Saturday, April 16, 2011

तीन थे भाई

फिल्म समीक्षा

गहरी है खाई: तीन थे भाई

धीरेन्द्र अस्थाना

यह अंदाजा नहीं था कि जिन लोगों पर हम भरोसा करते हैं वे लोग भी हमे गच्चा दे सकते हैं। फिल्म पर बतौर प्रोड्यूसर राकेश ओमप्रकाश मेहरा का नाम था इसलिए सोचा कि यकीनन लीक से हटकर बनी होगी। फिल्म के शुरुआती आधे घंटे तक लगता रहा कि कहीं यह फिल्म बच्चों के लिए तो नहीं बनायी गयी है, लेकिन बाद में समझ आया कि यह तो निहायत बचकानी फिल्म है। कॉमेडी के नाम पर ‘हास्य व्यंग्य‘ जैसी ताकतवर विधा का कचरा कर दिया है लेखकों ने। ‘तीन थे भाई‘ के तीन पक्ष हैं। पहला कथा पक्ष जो निहायत ही लचर और बेसिर-पैर है, दूसरा अभिनय पक्ष जो दुखद है। तीसरा गीत संगीत पक्ष जो थोड़ा बहुत सुकून देता है। लीक से हटकर फिल्म बनाने के चक्कर में निर्देशक फिल्म की पूरी कास्ट के साथ एक गहरी खाई में जा गिरा है। मूल कहानी से छिटककर जब तीनों भाई क्रमशः अपने अतीत में जाते हैं उस समय के कुछ टुकड़े संवेदनशील और जीवंत लगते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि दर्शक किसी फिल्म को टुकड़ों में नहीं समग्रता में देखने जाते हैं। कुल मिलाकर ‘तीन थे भाई‘ एक असफल फिल्म है जो खराब फिल्म के अच्छे उदाहरण के रूप में याद की जाएगी। ओम पुरी, श्रेयस तलपदे और दीपक डोबरियाल तीन सगे भाई हैं जिनमें आपस में जरा भी नहीं बनती। असल में तो तीनों एक दूसरे को नफरत की हद तक नापसंद करते हैं। तीनों अपने दादा की मनमानी और सख्ती के चलते गांव से पलायन करते हैं और शहर में एक निम्न मध्य वर्गीय जीवन उच्च वर्गीय सपनों के साथ बिता रहे होते हैं। तभी उन्हें पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश के एक कस्बे में उनके दादा ने एक प्रोपर्टी छोड़ी है जिसके वारिस वे तीनों हैं। पर एक कठोर शर्त है कि तीनों को प्रत्येक वर्ष उस पहाड़ी पर पहुंचकर एक रात बितानी पड़ेगी। शर्त पूरी होने पर प्रोपर्टी बेच कर जो पैसा मिलेगा वो तीनों में बंट जाएगा। इस कहानी को अगर थोड़ी संजीदगी से फिल्मा दिया जाता तो एक ठीक-ठाक फिल्म बन सकती थी। लेकिन फिल्म में कॉमेडी का पूरा ढाई सौ ग्राम का पैकेट उंड़ेल कर फिल्म को कड़वा बना दिया गया है। नये अभिनेता दीपक डोबरियाल ने एक बार फिर अच्छा काम किया है। ओम पुरी पर दर्शकों को अभिमान है। उन्हें कैसी भी फिल्म साइन करके दर्शकों को दुख नहीं देना चाहिए।

निर्देशक: मृगदीप सिंह लांबा
कलाकार: ओम पुरी, श्रेयस तलपदे, दीपक डोबरियाल, रागिनी खन्ना, योगराज सिंह
गीत: गुलजार
संगीत: दलेर मेहंदी, रणजीत बारोट आदि

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