Monday, November 1, 2010

नक्षत्र

फिल्म समीक्षा

इस ‘नक्षत्र‘ के दर्शक चार

धीरेन्द्र अस्थाना

मल्टीप्लेक्स में जाकर फिल्म देखना बहुत महंगा शौक हो गया है इसलिए दर्शक अब कोई भी फिल्म नहीं देखते। मोहन सावलकर की फिल्म के साथ भी दर्शकों ने यही रवैया अपनाया। उनकी ‘नक्षत्र‘ को देखने दर्शक सिनेमाघरों में नहीं पहुंचे। लेखक ने यह फिल्म केवल तीन अन्य दर्शकों के साथ देखी। आठ करोड़ में बनी ‘नक्षत्र‘ के दर्शक चार। सवाल कम बजट का नहीं है। कम बजट में ‘भेजा फ्राई‘ और ‘देव डी‘ जैसी सुपर हिट तथा अर्थपूर्ण फिल्में भी बनती हैं। दो नये युवा कलाकारों शुभ तथा सबीना को इंट्रोड्यूस करने वाली ‘नक्षत्र‘ की कहानी बेजान, निर्देशन थका हुआ और पटकथा धीमी तथा लड़खड़ाती हुई है। दोनों नये कलाकार अपने अभिनय से कोई उम्मीद नहीं जगाते। लेकिन बहुत दिनों बाद पर्दे पर मिलिंद सोमन का ‘एक्शन‘ देखना अच्छा लगा। इस फिल्म से हो सकता है कि मिलिंद का पुनर्जन्म हो जाए। वह क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर बने हैं जिसमें उनका साथ दिया है नीरज कुमार ने। अनुपम खेर विलेन के रोल में हैं। फिल्म में उनकी मौजूदगी यह घोषणा करती है कि एक समय के बाद शायद पैसा पाने के लिए कोई भी रोल करना मजबूरी बन जाता है। फिल्म की एकमात्र विशेषता उसका कला निर्देशन है। आर्ट डायरेक्टर संतोष प्रजापति के बनाए कुछ सेट कलात्मक और दिलचस्प हैं। विशेष रूप से चाईना क्रीक में बनाया गया जानवरों की एक डॉक्टर का आवास और अस्पताल। फिल्म का नायक एक दृश्य में बुरी तरह घायल हो कर यहां पहुंचता है। फिल्म के पहले हिस्से में लगता है कि यह शायद बॉलीवुड में ‘स्ट्रगल‘ कर रहे एक लेखक की कहानी है। इस स्ट्रगल के दौरान दो चार अच्छे प्रसंग जुटाये गये हैं लेकिन बाद में कहानी ‘यू टर्न‘ ले लेती है। अब मामला ये है कि चार फिल्म निर्माताओं ने लेखक से एक पटकथा लिखवा कर, उसके जरिए एक नायाब हीरों का हार चुरा लिया है। इस हार की चोरी के आरोप में फिल्म का हीरो फंस गया है। कुछ अविश्वसनीय सूत्रों के जरिए वह एक एक कर चारों प्रोड्यूसर तक पहुंचता है लेकिन क्रमशः चारों ही प्रोड्यूसर कत्ल कर दिए जाते हैं। चौथे प्रोड्यूसर के कत्ल होने से कुछ पहले यह राज खुल जाता है कि असली हीरो चोर तो खुद अनुपम खेर हैं जिनकी छवि एक दानवीर शहंशाह जैसी है। फिल्म मुंबई और बैंकॉक के बीच बेवजह आवाजाही करती रहती है। अनुपम खेर मुंबई में रहते हैं लेकिन उनका निवास बैंकॉक की लोकेशन पर है। इसी तरह फिल्म का हीरो दिल्ली से मुंबई आकर स्ट्रगल कर रहा है। लेकिन कई फिल्म कंपनियों की लोकेशन बैंकॉक में शूट हुई हैं। ‘नक्षत्र‘ सन् 2010 की फिल्म है लेकिन उसे फिल्माने का निर्देशकीय नजरिया 1950 के समय जैसा है। इस ‘नक्षत्र‘ से दूर रहने में ही समझदारी है।

निर्देशक: मोहन सावलकर
कलाकार: शुभ, सबीना, मिलिंद सोमन, अनुपम खेर
संगीत: डीजे शेजवुड, समीर सेन, हैरी आनंद

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