Saturday, March 6, 2010

अतिथि तुम कब जाओगे

फिल्म समीक्षा

अतिथि, तुम तो आते रहना

धीरेन्द्र अस्थाना

फिल्म का नाम भले ही ‘अतिथि तुम कब जाओगे‘ रखा गया है लेकिन इसका संदेश यही है कि अतिथि तुम आते रहना। हिंदी के प्रख्यात व्यंग्यकार स्वर्गीय शरद जोशी की व्यंग्य रचना ‘अतिथि तुम कब जाओगे‘ का न सिर्फ शीर्षक फिल्म के लिए लिया गया है बल्कि उस रचना की कुछ पंक्तियों को फिल्म की व्याख्या के लिए बतौर नेरेशन भी पेश किया गया है। फिल्म के निर्देशक अश्वनी धीर हैं जो शरद जोशी की रचनाओं पर बने एक धारावाहिक ‘लापतागंज‘ को भी निर्देर्शित कर रहे हैं। यह सीरियल कई दिनों से चल रहा है। बतौर प्रोड्यूसर यह अमिता पाठक की पहली फिल्म है। खुशी की बात है कि बॉलीवुड में लगातार युवा लड़कियां निर्माता के तौर पर भी आ रही हैं।
फिल्म की दो चार कमजोरियों पर चर्चा करने से पहले बता देते हैं कि दर्शक निश्चिंत हो कर, पूरे परिवार के साथ यह फिल्म देखने जा सकते हैं। यह एक बड़ी मजेदार और घरेलू टाइप की अपनी सी लगती फिल्म है। इंटरवल तक फिल्म का ताना बाना और कथानक इतना कसा हुआ है कि हमें पता ही नहीं चलता कि इंटरवल आ गया? प्रतिभावान अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा की संबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अभिनेत्री नहीं लगतीं। वह फिल्म में भी वह हमारे आसपास की किसी हाउसिंग सोसायटी में रहने वाली आम फहम घरेलू स्त्री नजर आती हैं। वह एकदम सतह से उठता हुआ अभिनय करती हैं। विश्वसनीय और जिंदादिल। मूलतः यह फिल्म कुल तीन किरदारों अजय देवगन, कोंकणा सेन शर्मा तथा परेश रावल पर ही केंद्रित है। लेकिन सतीश कौशिक और अखिलेंद्र मिश्र के होने से फिल्म को गति और उप कथाएं मिलती हैं। परेश रावल तो खैर कॉमेडी के बादशाह हैं लेकिन इतनी ज्यादा कॉमेडी फिल्में करने के बावजूद अजय देवगन का चेहरा अभी भी एक अजीब सी गंभीरता में तना रहता है। इस गंभीरता को जस्टीफाई करने के लिए ही निर्देशक ने शायद फिल्म के अंत से पहले वाले एक दृश्य में अजय से एक गंभीर संदेश दिलवा दिया है। वैसे अजय देवगन अब परिपक्व हो चुके हैं। उनका अभिनय फिल्म को प्रभावी बनाता है। अब कुछ नाकामियों और विचलन पर। परेश रावल का ‘गैस विसर्जन‘ कुछ ज्यादा हो गया है। इंटरवल के बाद निर्देशक के हाथ से फिल्म फिसलनी शुरू होती है तो फिर फिसलती ही जाती है। अंत में यह दिखा कर कि परेश रावल गलती से गलत घर में मेहमान बन कर आ गये थे, फिल्म को बिखरने से रोक लिया गया है। इंटरवल के बाद का ‘निर्देशकीय कन्फ्यूजन‘ दर्शकों को स्पष्ट समझ में आता है। फिल्म अवांछित अतिथि के आने के पक्ष में है या विपक्ष में, इसका जबर्दस्त भ्रम बन जाता है। दो-एक उपकथाएं भी गैर जरूरी नहीं तो लंबी जरूर हो गयी हैं। तो भी एक बेहतर और रोचक फिल्म है।

निर्देशक : अश्विनी धीर
कलाकार: अजय देवगन, कोंकणा सेन शर्मा, परेश रावल, सतीश कौशिक, अखिलेंद्र मिश्रा
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

2 comments: