फिल्म समीक्षा
फुकरों की फगली
धीरेन्द्र अस्थाना
फगली का कोई आधिकारिक अर्थ नहीं है जैसे फुकरों का भी कोई अर्थ नहीं है। मगर फुकरों का एक मतलब यह मान लिया गया है कि किसी की परवाह न करने वाले बिंदास अलमस्त और मौज मजा में यकीन रखने वाले युवाओं की टोली। इसी तरह फगली का मतलब पागलपंती मान लेते हैं। ऐसी पागलपंती जिसमे जुनून के साथ कोई मिशन भी जुड़ा हो। निर्देशक कबीर सदानंद ने विषय अच्छा उठाया था लेकिन उसे साध नही पाये। दर्शक शायद थोड़ी अश्लीलता, थोड़ी कॉमेडी और थोड़े एंटरटेनमेंट की आस ले कर फिल्म देखने आये थे। इसीलिए पहले दिन सिनेमा घरों में अच्छी खासी भीड़ रही। नये कलाकारों के बावजूद युवा दर्शक फिल्म देखने आये। मगर अफसोस कि बहुत लंबे समय बाद यह नजारा देखने को मिला कि पचासों दर्शक फिल्म खत्म होने से काफी पहले ही सिनेमाघर छोड़ कर जाते दिखे। संदेशपरक और गंभीर फिल्म थी लेकिन बहुत बोझिल और उबाउ हो गयी थी कई जगह। कहीं कहीं पर दिल्ली का खिलंदड़ा अंदाज था, खुली गालियां थी लेकिन कुल मिला कर पूरी फिल्म पर एक थकावट सी तारी थी। फिल्म की रफ्तार भी बीच बीच में टूट टूट जाती थी। बॉक्सर विजेन्द्र सिंह की यह डेबू फिल्म है। बाकी युवा टाली भी प्रायः नये कलाकारों की है। विजेन्द्र सिंह, मोहित मारवाह, अरफी लांबा और कायरा आडवानी बचपन के दोस्त हैं जो अपने अपने संधर्ष का जीवन बिताते हुए जवान हो गये हैं। उनके कुछ सपने हैं। विजेन्द्र को वर्ल्ड फेमस बॉक्सर बनना है। मोहित को एडवेंचर कैंप लगाने हैं। कायरा को मां को खुश रखना है और अरफी कनफ्यूज्ड है। दिल्ली की सड़कों पर यह टोली मस्ती करती घूमती रहती है। कभी पुलिस इन्हें पकड़ लेती है तो विजेन्द्र अपने बाप का नाम लेकर सबको छुड़ा लेता है। विजेन्द्र का बाप मंत्री है। लेकिन एक बार इनका टकराव चौटाला नाम के सिरफिरे और लालची पुलिस अधिकारी जिमी शेरगील से हो जाता है। घटना की रात ये लोग उस दुकानदार के हाथ पांव बांध कर अपनी कार की डिक्की में डाले हुए थे जिसने कायरा को छेड़ा था। जिमी दुकानदार का मर्डर कर देता है और उस भाले पर विजेन्द्र के हाथों के निशान ले लेता है जिससे मर्डर हुआ है। फिर वह चारों को गाड़ी में बिठा कर एक पुराने किले में ले आता है। जिमी इनसे इकसठ लाख रूपये दे कर मुक्त हो जाने या फिर तिहाड़ जेल की हवा खाने की पेशकश करता है। ये लोग पैसे जुटाने के लिए क्या क्या पापड़ बेलते हैं और इसके बावजूद जिमी के बिछाये जाल में उलझते जाते हैं, यह फिल्म देखकर जानना ज्यादा उचित होगा। फिल्म खुलती है उस शॉट से जिसमें फिल्म का हीरो मोहित अमर जवान ज्योति के सामने खुद पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा लेता है। इसके बाद पूरी फिल्म फ्लैशबैक में चलती है। इस घटना से पूरी दिल्ली में कैसे जनजागरण होता है यही इस फिल्म का संदेश है। फिल्म के अंत में मोहित मारा जाता है। जिमी पहले गिरफ्तार होता है फिर मार दिया जाता है। बाकी बचे दोस्तों के सपने पूरे हो जाते हैं। यही है फगली।
निर्देशक : कबीर सदानंद
कलाकारः जिमी शेरगिल, मोहित मारवाह, विजेन्द्र सिंह, कायरा आडवानी, अरफी लांबा।
संगीत : यो यो हनी सिंह
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