फिल्म समीक्षा
तलछट का कोरस यानी गैंग्स ऑफ वासेपुर-2
धीरेन्द्र अस्थाना
बॉलीवुड के स्टार निर्देशक इम्तियाज अली का मानना है कि ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर‘ पर इंडस्ट्री को गर्व करना चाहिए। यह अनुराग कश्यप की अब तक की श्रेष्ठ फिल्म है। इम्तियाज की राय सौ फीसदी सही है। सचमुच यह फिल्म जीवन के भयावह यथार्थ को दसों उंगलियों से पकड़ने का कारनामा है। यहां गैंगवार लार्जर दैन लाइफ बनकर ग्लैमर का आलोक नहीं रचती बल्कि जमीन पर बने रहकर कत्लेआम को पूरे दुख और पूरे शोर के साथ पेश करती है। फिल्म के पहले पार्ट की तरह दूसरे पार्ट में भी चरित्रों का एक मेला जैसा मौजूद है लेकिन यह अनुराग की खासियत है कि वह हर चरित्र को परिभाषित भी करते हैं और उसकी यात्रा को पूर्णता भी देते हैं। पहले पार्ट के अंत में गैंगस्टर मनोज बाजपेयी मार दिए जाते हैं। पीछे रह जाती हैं उनकी दो पत्नियां और बच्चे। अब नये पार्ट में वासेपुर पर मनोज के गंजेड़ी बेटे नवाजुद्दीन का दबदबा है। मनोज की दूसरी बीवी दुर्गा (रीमा सेन) का बेटा शमशाद (राजकुमार यादव) डॉन बनना चाहता है। उसकी यह चाहत उसे बड़े भाई नवाजुद्दीन को लेफ्टिनेंट बना देती है। हुमा कुरैशी अब नवाजुद्दीन की पत्नी हैं। बाकी किरदार वही हैं - एमएलए रामाधीर सिंह (तिग्मांशू धूलिया), नगमा खातून (रिचा चड्ढा), फरहान (पीयूष मिश्रा), जेपी सिंह (सत्या आनंद) और सुल्तान कुरैशी (पंकज त्रिपाठी)। ये सब मिलकर जिंदगी की तलछट को कोरस में गाते हैं। रक्तपात और रंजिश में डूबा यह समाज प्यार भी करता है, नफरत भी। कत्ल भी करता है और शोक में भी डूबता है। इसका सब कुछ जमीनी है। इसके तमाम किरदार किसी भी शहर के गली-कूचों में भटकते मिल जाएंगे। सिनेमाई होने के बावजूद इस फिल्म के किरदार हिंदुस्तान के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। नवाजुद्दीन ही नहीं फिल्म के प्रत्येक एक्टर ने एक्टिंग नहीं की है, किरदार की काया में प्रवेश किया है। सतह से उठकर विराट में एकाकार होती यह फिल्म सिनेमा के मकसद और मर्म को एक नयी ऊंचाई देती है। अनुराग ने खुद को सिनेमा के विश्व नागरिकों के बीच खड़ा कर लिया है। काश, वह उस जगह पर टिके रहें। फिल्म में गाने भी हैं। अजीबो-गरीब लेकिन अद्भुत। इस फिल्म को सारे कार्य छोड़कर देखें। यह फिल्म अच्छे-अच्छे निर्देशकों को ‘नरभसा‘ देगी।
निर्देशक: अनुराग कश्यप
कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, तिगमांशू धूलिया, रिचा चड्ढा, हुमा कुरैशी, रीमा सेन, राजकुमार यादव, पीयूष मिश्रा।
संगीत: स्नेहा खान बलचर।
No comments:
Post a Comment