कम दगाबाज नहीं साहित्यकार भी
धीरेन्द्र अस्थाना
‘यह क्या/मैंने घर बसाया/और बेघर हो गया/घर में क्यों नहीं रह पाता प्रेम?‘ इन पंक्तियों के भीतर घर बसाने, घर बिखर जाने और फिर से घर बसाने की मुख्य चाहत छिपी है। जिंदगी बिताने के लिए एक मनपसंद जीवन साथी खोजना एक बुनियादी तथा नैसर्गिक इच्छा है जो अनेक कारणों से टूटती-बिखरती भी आयी है। बेमेल विवाह, नकली दंभ, इच्छाओं का टकराव, विपरीत रुचियां और अपने सपनों में जीवन साथी को कतई अजनबी अनुभव करना बिखराव के प्रमुख कारण हैं। यह कितनी बड़ी विसंगति है इस रिश्ते की, कि दूसरे विवाह के मुद्दे पर, शान से दूसरा विवाह करने वाले अनेक नये-पुराने साहित्यकार प्रतिक्रिया देने से न सिर्फ किनारा कर गये बल्कि उन्होंने आग्रह किया कि इस संदर्भ में उनका नामोल्लेख भी न किया जाए। दिवंगत लेखकों में अज्ञेय, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, राहुल सांकृत्यायन, रमेश बक्षी आदि के दूसरे विवाह चर्चित रहे हैं। बहरहाल, अपनी कहानियों से हिंदी में हलचल मचाये रखने वाले साहित्यकार उदय प्रकाश का इस बारे में कहना है -‘समाज के अपारंपरिक क्षेत्र, जिनमें खेल, साहित्य, कला नृत्य, थियेटर और सिनेमा आते हैं, इनमें समाज की पारंपरिक सत्ताओं का उतना नियंत्रण नहीं रहता जितना एक आम नागरिक समाज में रहता है। मीडिया और बाजार के इस नये समय में इन अपारंपरिक इलाकों में रहने वाले लोग सेलिब्रिटी हो जाते हैं। उनकी पहचान उनकी सामाजिक सांस्कृतिक अस्मिता के द्वारा नहीं बल्कि उनकी अपनी सफलता/असफलता पर निर्भर करती है। इन लोगों की दूसरी या तीसरी या चैथी शादी की जरूरत को उन तर्कों से नहीं समझा जा सकता जिन तर्कों से हम एक आम पारिवारिक व्यक्ति के विवाह को समझते हैं। व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके किसी चुनाव की निजता/एकांतिकता पर चैतरफा हमला व्यर्थ है/अर्थहीन है। वैसे, एक ताजा अमेरिकी अध्ययन के मुताबिक तलाक विचलन या दगाबाजी नहीं, अपने साथी के प्रति ईमानदारी का प्रतीक है। यानी जब तक साथ हैं, वफादार हैं। जब वफादार नहीं हैं तो अलग होते हैं।‘
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, पूर्व पुलिस अधिकारी और उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने दो टूक शब्दों में कहा -‘पुरुष बुनियादी रूप से दगाबाज स्वभाव का होता है। वह दूसरी शादी के लिए न सिर्फ तर्क तलाश लेता है बल्कि दूसरी शादी कर भी लेता है। आम तौर पर स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर पाती।‘
संपादिका, लेखिका और स्त्री विमर्श की प्रमुख हस्ताक्षर क्षमा शर्मा भी यही मानती हैं कि ‘आम तौर पर, पहला विवाह टूटने पर, स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर पाती। एक बड़ी वजह उसके पास छूट गये बच्चे होते हैं। दूसरी वजह, पहले विवाह की असफलता का बोध उसे दूसरे विवाह की (भी) व्यर्थता का पूर्वाभास करा देता है। मजेदार स्थिति यह है कि पहले विवाह में लोग बेहद छोटे कारणों से अलग हो जाते हैं जबकि दूसरी शादी में बेहद बड़े कारणों से भी समझौता कर लेते हैं। यह रवैया पहली शादी में अपनाएं तो शादी टूटे ही न। तलाक के बाद सामान्य जीवन की तरफ लौटने में डेढ़-दो साल लग जाता है। कभी-कभी पुराना सामान्य जीवन लौटता ही नहीं है। इसलिए पहली प्राथमिकता विवाह को बचाये रखने की होनी चाहिए। क्योंकि यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि दूसरा विवाह सफल ही होगा।‘
आठवें दशक की संवेदनशील लेखिका राजी सेठ का कहना है -‘वास्तविक अर्थों में देखें तो तमाम शादियां एक अरसे के बाद सिर्फ शादियां रह जाती हैं। यह बोध होना चाहिए कि शादी को प्रेम नहीं समझदारी जिंदा रखती है। समझ होती है तो प्रेम भी टिक जाता है वरना वह भी टूट जाता है। समझदारी पौधों को पानी देने की तरह होती है। लचीलापन हर चीज को जिंदा रखता है - प्रेम को भी, विवाह को भी, दोस्ती को भी।‘
‘हंस‘ के संपादक और वरिष्ठ लेखक राजेंद्र यादव ने कहा -‘पहले मां-बाप शादी कर देते थे। पढ़-लिख कर पता चलता था कि पत्नी मनमाफिक नहीं है। तब आदमी दूसरे विवाह की तरफ लपकता था। कभी कभी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद जीवन का अकेलापन भरने के लिए भी दूसरा विवाह किया जाता है। लेकिन पहला हो या दूसरा, कोई भी विवाह सुख या संतुष्टि की गारंटी नहीं है।‘
दूसरे विवाह की सबसे बड़ी त्रासदी आम तौर पर यह पायी गयी कि वर्तमान में जो अतीत घुस कर बैठा रहता है, वह दूसरी शादी की यात्रा को निर्विघ्न नहीं चलने देता।
Monday, April 19, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
यह बोध होना चाहिए कि शादी को प्रेम नहीं समझदारी जिंदा रखती है। समझ होती है तो प्रेम भी टिक जाता है वरना वह भी टूट जाता है। समझदारी पौधों को पानी देने की तरह होती है। .....
ReplyDeleteA proper understanding is the key in each relationship !