फिल्म समीक्षा
‘तुम मिलो तो सही‘: जीना यहां
धीरेन्द्र अस्थाना
स्वर्गीय दुष्यंत कुमार का एक प्रसिद्ध शेर है - ‘जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले / मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।‘ जाहिर है कि यहां गुलमोहर एक प्रतीक है - जिंदगी का, जिंदगी के मकसद का, जिंदगी के स्वप्न का। बहुत दिनों बाद कोई कायदे की फिल्म देखने को मिली है जिसमें किसी मकसद को बेहद कुशलता और संवेदनशील ढंग से बुना गया है। निर्देशक कबीर सदानंद की फिल्म ‘तुम मिलो तो सही‘ पूरी तरह फार्मूला फिल्म होने के बावजूद न सिर्फ दिल को स्पर्श करती है बल्कि मकसद की एक अलग ही यात्रा पर ले जाती है। यह मकसद मुंबई को जानने समझने वालों को ज्यादा आंदोलित करेगा। मुंबई में बने ईरानी रेस्तराओं की दशा-दिशा और अतीत की एक लंबी तथा भावनात्मक दास्तान है। इस फिल्म में इसी दास्तान के एक तार को छेड़ा गया है। यह तार है लकी कैफे जिसकी मालकिन डिंपल कापड़िया हैं। वह तीस साल से यह कैफे चला रही हैं और उस परंपरा का निर्वाह कर रही हैं जिसके लिए ईरानी रेस्त्रां तथा उसके पारसी मालिक जाने जाते हैं। फिल्म में तीन जोड़े हैं लेकिन तीनों जोड़े यानी छह मुख्य किरदार लकी कैफे से आकर जुड़ते हैं। पूरी तरह मुंबई में बसे मध्यवर्गीय लोगों के सपनों, संघर्षों, जद्दोजहद और जुननू की चुस्त दुरूस्त कथा कहती है - ‘तुम मिलो तो सही।‘
सुनील शेट्टी शहर के एक मल्टीनेशनल रेस्त्रां का सीईओ है। उसकी कंपनी की नजर डिंपल के लकी कैफे पर गड़ी है क्योंकि वह शहर की प्राइम लोकेशन पर बना हुआ है। कंपनी यह जिम्मेदारी सुनील शेट्टी को सौंपती है क्योंकि उसकी पत्नी विद्या मालवदे तथा उसका बेटा अंकुर डिंपल से भावनात्मक स्तर पर जुड़े हैं। नाना पाटेकर एक रिटायर बीए एल एल बी हंै जो जीवन का पहला मुकदमा लकी कैफे को बचाने के लिए लड़ते हंै। नया हीरो रेहान खान फौज में जाना स्थगित कर जिंदगी देखने मुंबई आया है जहां वह अंजना सुखानी से जुड़ गया है। ये दोनों ‘सेव लकी कैफे‘ के मुख्य सेनानी हैं। सुनील शेट्टी की पत्नी उसका साथ छोड़ कर डिंपल के पक्ष में चली गयी है। उसे सुनील के चार बैडरूम वाले फ्लैट में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह रिश्तों की कीमत पर दीवारें नहीं पाना चाहती। छह पात्रों की छह जुदा कहानियां और छह जुदा मकसद हैं। इन सबको निर्देशक ने गूंथकर एक गुलमोहर में बदल दिया है। यही है इस फिल्म का मजबूत पक्ष। सौ प्रतिशत डिंपल कापड़िया की फिल्म है जिसे नाना पाटेकर के जीवंत और बेहतरीन काम ने नयी ऊंचाई बख्शी है। संदेश शांडिल्य का संगीत प्रभावशाली और हृदयस्पर्शी दोनों है। इरशाद कामिल के दो गीत लंबे समय तक गाये जाते रहेंगे। इस वर्ष की अच्छी फिल्मों में गिनी जाएगी यह।
निर्देशक: कबीर सदानंद
कलाकार: नाना पाटेकर, डिंपल कापड़िया, सुनील शेट्टी, विद्या मालवदे, रेहान खान, अंजना सुखानी
संगीत: संदेश शांडिल्य
Saturday, April 3, 2010
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wow bahut achi rachna he ye
ReplyDelete‘तुम मिलो तो सही‘: जीना यहां
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/