Sunday, November 30, 2014

उंगली

फिल्म समीक्षा

नेक इरादों की थकी उंगली

धीरेन्द्र अस्थाना

नेक इरादों को लेकर थकी पटकथा के साथ बनायी गयी एक औसत फिल्म। करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन से ऐसी फिल्म निकलने की उम्मीद नहीं थी। कलाकारों के नाम देख कर दर्शक ज्यादा बड़ी उम्मीदें ले कर न जाएं। करप्ट सिस्टम के खिलाफ हिंदी में एक से एक नायाब फिल्में बनी हैं। यह फिल्म भी उसी कतार में है लेकिन पिछली पंक्ति में। सिस्टम से लड़ने के लिए निर्देशक ने एक नया और युवा अंदाज जरूर चुना लेकिन उसे एक बेहतरीन अमली जामा नहीं पहना पाए। कंगना के भाई को एक बड़े फिक्सर का बेटा जान से मारने की कोशिश करता है। भाई कोमा में चला जाता है। न पुलिस में फरियाद होती है न न्याय में। हर जगह करप्शन है या बाहुबल है। क्रिमिनल तो बन नहीं सकते इसलिए सिस्टम को सुधारने के लिए चार दोस्त मिल कर उंगली गैंग बनाते हैं। इस गैंग में हैं कंगना रनौत, रणदीप हुडा, अंगद बेदी और नील भूपलम। एसएम जहीर दो साल से पेंशन दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं मगर उन्हें पैसे नहीं मिलते। ये पेंशन बाबू बनते हैं उंगली गैंग के पहले शिकार। उंगली गैंग इन्हें अगवा करके इनके शरीर में नकली बम बांध कर स्टेडियम में दौड़ने को कहता है-इस धमकी के साथ कि अगर वे रूके तो बम फट जाएगा। फिर इसकी खबर वे पुलिस और मीडिया को दे देते हैं। पूरा देश खबर देखता है और उंगली गैंग पब्ल्कि के बीच लोकप्रिय हो जाता है। उनका दूसरा शिकार बनता है शहर का एक प्रभावशाली लेकिन करप्ट नेता जिसके जन्म दिन पर उंगली गैंग उसके घर के चप्पे चप्पे पर उंगली के पोस्टर लगवा देते हैं। उंगली गैंग को पकड़ने के लिए एसीपी काले यानी संजय दत्त को बुलाया जाता है जिसकी इमेंज पुलिस महकमें में एक इमानदार और सख्त पुलिस ऑफिसर की है। संजय अपनी मदद के लिए इस मिशन में इमरान हाशमी को शामिल करता है जो खुद भी एक सनकी पुलिस ऑफिसर है। इमरान उंगली गैंग में घुसने के लिए उंगली गैंग जैसे ही दो कारनामे करता है। पहला, लम्बा भाड़ा चाहने वाले ऑटो चालक को उसी के ऑटो में बांध कर माल गाड़ी से दिल्ली रवाना करने का। दूसरा, नगर पालिका कमिश्नर के घर के सामने वाली चमचमाती सड़क पर बम फोड़ कर सड़क को तहस नहस करने का। उंगली गैंग चक्कर में पड़ जाता है क्योंकि दोनो कारनामे उंगली गैंग के नाम पर हुए हैं। उंगली गैंग के सदस्य इमरान हाशमी से मिलते हैं और काफी पूछताछ तथा जांच पडताल के बाद इमरान को अपने गैंग में शामिल कर लेते हैं। इसके बाद की कहानी बतायी तो फिल्म में आप की दिलचस्पी खत्म हो जाएगी इसलिए फिल्म देखिए क्योंकि एक बार तो देखना बनता है। जो सरोकारों की फिल्म हो उसे एक बार तो देखना ही चाहिए। फिल्म वाले सिनेमाई लिबर्टी के नाम पर जो छूट ले लेते हैं वह कई बार बहुत कोफ्त पैदा करती है। इस फिल्म में भी पुलिस महकमें को ले कर ऐसी छूट ली गयी है। कभी भी कहीं भी पूरा काला या पूरा सफेद नहीं होता। अगर ऐसा हो तो देश चलना तो दूर रेंग भी नहीं सकता। लेकिन कोई बात नहीं। अच्छे इरादों की फिल्म है इसलिए यह छूट भी स्वीकार है।

निर्देशक : रेंसिल डिसिल्वा
कलाकारः संजय दत्त, इमरान हाशमी, रणदीप हुडा, कंगना रनौत, नेहा धूपिया, अंगद बेदी
संगीत : सलीम सुलेमान, सचिन जिगर




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