फिल्म समीक्षा
आम आदमी की जंगः इक्कीस तोपों की सलामी
धीरेन्द्र अस्थाना
आम तौर पर मुख्य धारा के सिनेमा को केवल मनोरंजन का माध्यम माना जाता है। अविश्वसनीय लगने वाले सीन या धटनाओं को सिनेमाई लिबर्टी या लार्जर देन लाइफ का हवाला देकर जस्टीफाइ कर लिया जाता है। लेकिन कुछ लोग हैं जो मनोरंजन के इस व्यापक माध्यम में सेंध लगा कर कोई न कोई संदेश देने का मौका तलाश ही लेते हैं। असल में इन थोड़े से लोगों के कारण ही थोड़ा सा मुख्य धारा का सिनेमा सार्थकता के हाशिये पर खड़ा टिमटिमाता रहता है। इक्कीस तोपों की सलामी एक कच्ची, कमजोर लेकिन सार्थक फिल्म हैं। यह सत्ता की शक्ति संपन्नता और भ्रष्टाचार की नदी को ठेंगा दिखाते हुए एक आम आदमी की इमानदारी को परिभाषित करती है। इस क्रम में जब आम आदमी हार जाता है तो फिल्म आम आदमी की जंग को अन्य तरीकों से अंजाम देती है। अनुपम खेर महानगर पालिका में जमादार है और मच्छर ग्रस्त कॉलोनियों में मच्छर धुआं उडाने का काम करता है। अपनी सत्ताइस साल की नौकरी में उसने एक भी छुट्टी नहीं ली और न ही उसके उपर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप है। अपनी इस अडिग इमानदारी के कारण उसका अपने दोनों बेटों के साथ भी टकराव और टशन है। बड़ा बेटा नगरपालिका में है और रिश्वत लेने को बुरा नहीं मानता। छोटा बेटा भ्रष्टाचारी मुख्य मंत्री की सिपहसालार टीम का गुर्गा है और पिता को मूर्ख तथा निकम्मा मानता है। मुख्य मंत्री राजेश शर्मा एक नंबर का लम्पट और अय्याश है। वह फिल्मों की सी ग्रेड नाइका नेहा धूपिया के प्रेम पाश में बंधा हुआ है। राजेश शर्मा ने मुख्य मंत्री के रूप में बेहद शानदार और जीवंत अभिनय किया है जबकि नेहा धूपिया अपने करियर के सबसे खराब और नकली रोल में है। हालांकि उन्हें एक ऐसा दमदार चरित्र दिया गया था कि वह फिल्म में अपना सिक्का जमा सकती थी। फिल्म का शुरू का आधा हिस्सा उटपटांग और नकली है। लेकिन रिटायरमेंट के अंतिम दिन जब अनुपम खेर को भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर दिया जाता है और सदमे से अनुपम खेर का देहांत हो जाता है उसके बाद फिल्म एक सार्थक और संदेशपरक डगर पर चल पड़ती है। दोनों बेटे पिता को इक्कीस तोपों की सलामी दिलाने की पिता कि अंतिम इच्छा को पूरा करने की प्रक्रिया में जुट जाते हैं। दोनों की लड़ाई में बड़े की पत्नी और छोटे की प्रेमिका भी उनके साथ आ खड़ी होती हैं। चूंकि छोटे की प्रेमिका अदिती शर्मा मुख्य मंत्री की पर्सनल सचिव है इसलिए दोनों बेटों की योजना आसानी से साकार हो जाती है। वे हार्ट अटेक से मरे मुख्य मंत्री की लाश को भाइंदर, मुंबई की खाड़ी में फेंकने और उसकी जगह अपने पिता को इक्कीस तोपों की सलामी दिलाने में कामयाब हो जाते हैं। फिल्म के कई सीन नकली हैं लेकिन सार्थक संदेश के कारण उन्हें माफ किया जा सकता है। संगीत लुभावना है। फिल्म को एक बार देखा जा सकता है। यह कलाकारों की नहीं कहानी की फिल्म है।
निर्देशक : रवीन्द्र गौतम
कलाकारः, अनुपम खेर, नेहा धूपिया, दिव्येंदू शर्मा मनू रिषी चढ्ढा, अदिती शर्मा
संगीत : राम संपत
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