फिल्म समीक्षा
खूबसूरत और संवेदनशील ‘टू स्टेट्स‘
धीरेन्द्र अस्थाना
पहले ‘हाइवे और अब ‘टू स्टेट्स‘। आलिया भट्ट की गाड़ी तो निकल पड़ी। महेश भट्ट की बेटा का हाव भाव बड़ा स्टाइलिश और मनभावन है। सबसे हटकर एकदम मौलिक। दो फिल्मों में अलग अलग किरदार सहज, जीवंत और असरदार तरीके से निभा कर आलिया ने खुद को साबित कर दिया है। अर्जुन कपूर भी सहज और संवेदनशील अभिनय करते नजर आए हैं। फिल्म का विषय नया नहीं है लेकिन जिस अंदाज में उसे साधा गया है वह आकर्षित करता है। दो जवान दिलों की मोहब्बत और फिर आपस में विवाह - यह स्थिति दोनों के माता-पिता को बर्दाश्त नहीं है। इस विषय को अलग अलग कोण और अलग अलग उप कथाओं के जरिए कई फिल्मों में दिखाया गया है। इस फिल्म को सुखांत मोड़ लड़के के पिता के हस्तक्षेप से दिलवाया गया है। फिल्म में प्रेम के द्वंद्व से ज्यादा मर्मस्पर्शी पिता-पुत्र के बीच पसरा तनाव और क्रोध है जो पिघलता है तो जिंदगी के समीकरण सुलझने लगते हैं। अर्जुन कपूर के पिता के रूप में रोनित रॉय और मां के रोल में अमृता सिंह ने अच्छा और दिलचस्प काम किया है। एक गुस्सैल, बेकार और कुंठित पति व पिता के किरदार में रोनित रॉय ने यादगार जान डाल दी है। पिता-पुत्र में संवाद तक नहीं है। लेकिन यही पिता बिन बताए लड़की के मां-बाप से मिलने चेन्नई चले जाते हैं और अपनी पत्नी के खराब बर्ताव के लिए माफी मांग कर लड़की के मां-बाप का दिल जीत लेते हैं। पिता के इस आचरण से अर्जुन स्तब्ध रह जाता है। वह तो अपने पिता से नफरत करता था। तो फिर यह उसके पिता ने क्या किया? जवाब भी पिता देता है - ‘मैं बुढ़ापे में अपने बेटे को खोना नहीं चाहता था।‘ संवाद सुनते और दृश्य देखते हुए दिल में हाहाकार जैसा तो कुछ होता है। आलिया तमिल लड़की है। अर्जुन पंजाबी मुंडा है। दोनों अहमदाबाद के आईआईएम इंस्टीट्यूट में टकराते हैं। दोनों में दोस्ती होती है फिर दोनों बड़े आराम से सेक्स भी कर लेते हैं। अब दोनों को शादी करनी है क्योंकि इंस्टीट्यूट से निकल कर दोनों नौकरी पा चुके हैं। लेकिन दोनों के ही परिवारों को यह रिश्ता मंजूर नहीं है। दोनों पक्ष अपने अपने कल्चर और कम्युनिटी की दुहाई देते हैं। अर्जुन और आलिया अपने परिवारों को कई बार मिलाने का प्रयास करते हैं लेकिन इस बार मामला उलझ जाता है। आखिर तंग आकर आलिया इस रिश्ते से हटने की घोषणा करती है। अर्जुन भीतर ही भीतर टूट जाता है। उसकी टूटन को उसका पिता ‘फील‘ करता है और अगले दिन बिना किसी को बताए आलिया के मां-बाप के घर के लिए निकल पड़ता है। अर्जुन के पिता के इस हस्तक्षेप के बाद राहें आसान हो जाती हैं। दोनों का परिवार की सहमति से विवाह हो जाता है। यही वे दोनों चाहते भी थे। फिल्म का संदेश यह है कि जब मां-बाप अपने हिस्से का जीवन अपनी मर्जी से जी चुके हैं तो फिर अपनी संतानों की राह को कठिन क्यों करना चाहते हैं? अच्छी फिल्म है। देख लेनी चाहिए। गीत संगीत में भी जान है।
निर्देशक: अभिषेक वर्मन
कलाकार: अर्जुन कपूर, आलिया भट्ट, रोनित राय, अमृता सिंह, रेवती
संगीत: शंकर-अहसान-लॉय
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