Saturday, April 12, 2014

गुलाब गैंग

फिल्म समीक्षा

सपने को सच करता गुलाब गैंग 

धीरेन्द्र अस्थाना 

गंाव की छोटी बच्ची बर्तन भांडे न मांजे बल्कि स्कूल पढ़ने जाए। पत्नी को सम्मानजनक दर्जा मिले। कोई भी दुष्ट व्यक्ति स्त्री को मारे पीटे नहीं, उसके साथ बलात्कार न करे। राशन पानी पर जनता का हक हो न कि जमाखोरों और लुटेरों का। गांव में बिजली हो, पानी हो, स्कूल हो। कितने छोटे छोटे लेकिन अनिवार्य सपने हैं यह। लेकिन इन सपनों में भी टुच्ची राजनीति सेंध लगा देती है और अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकती है। सपने तड़पते रह जाते हैं। तो सपनों को हकीकत में कैसे बदलें वंचित और असहाय लोग। यह भी एक सपना है और इस सपने को सच में तब्दील करने के लिए सामने आता है गुलाब गैंग। सहारा मूवीज स्टूडियोज और अनुभव सिन्हां की इस सेल्यूलाइड कृति से माधुरी दीक्षित और जूही चावला एक नये अवतार में लौटी है बड़े पर्दे पर। फिल्म के निर्देशक-कथाकार-संगीतकार सौमिक सेन ने विश्व महिला दिवस के अवसर पर एक एैसी संदेश परक और सार्थक फिल्म की सौगात दर्शकों को दी है जिसमें पहली बार हीरो भी हीरोइन है और विलेन भी हीरोइन। समाज द्वारा सताई गयी स्त्रियों का एक संगठन खड़ा किया है माधुरी दीक्षित ने। इस संगठन की औरतें गुलाबी साड़ी पहनती हैं इसलिए इस संगठन का नाम पड़ गया है गुलाब गैंग। यह गैग गांव में होने वाल प्रत्येक अत्याचार और अनाचार के विरूद्ध अपनी आवाज उठाता है। जब बात से बात नहीं बनती तो यह गैंग लात जमाता है। इस गैंग की औरतें सिर्फ हैंडमेड साड़ियां और घरेलू मसाले बना कर व्यापार ही नहीं करतीं बल्कि वक्त आने पर लाठियां भी भांजती हैं और हंसिये से भी काटती हैं।माधुरी दीक्षित का नारा भी है-” हंसिये को हथियार बनाऔ।” माधुरी की लोकप्रियता शहर की नेता और सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली जूही चावला तक पहुंचती है। जूही  दोस्ती का पैगाम भेजती है माधुरी को कि हमारे साथ आ जाओ और हमारी पार्टी से चुनाव लड़ो। चुनाव लड़ने को हां कहने वाली माधुरी जूही के अपोजिट चुनाव में उतरती है। और फिर शुरू होता है राजनीति का घिनौना खेल। वोट खरीद लिए जाते हैं। गुलाब गैंग के कार्यकर्ता मार दिए जाते हैैं। जूही चुनाव जीत जाती है। अब वह गैंग को ध्वस्त करने के लिए माधुरी के अड्डे पर पहुंचती है। वहां घमासान होता है। माधुरी जूही का हाथ काट देती है और गिरफ्तार होती है। फिर मुकदमा चलता है और एक विदेशी रिपोर्टर का स्टिंग ऑपरेशन इस बात का सबूत बनता है कि आक्रमण, षड्यंत्र और तस्करी का केंद्र जूही चावला है। जूही को सजा मिलती है। सजा माधुरी को भी मिलती है लेकिन वह जेल में महिला कैदियों को पढ़ाने के काम में लग जाती है। अभिनय के बारे में क्या कहा जाए? दो स्त्री महारथियों का टकराव और रंजिश देखने लायक है। जब कोई खतरनाक घटना घटने को होती है तो जूही टिफिन में से लौंग निकाल कर खाती है और माधुरी पीने के लिए पानी मांगती है। कुछ एडल्ट गालियां दो बड़ी अभिनेत्रियों के मुंह से सुनने का अतिरिक्त आनंद भी दर्शक उठा सकते हैं। टाइम पास नहीं गंभीर फिल्म है। गंभीरता से देखने जाएं।


निर्देशकः सौमिक सेन
कलाकारः माधुरी दीक्षित, जूही चावला, दिव्या जगदाले
संगीतः सौमिक सेन 

No comments:

Post a Comment