Tuesday, November 19, 2013

सत्या 2

फिल्म समीक्षा

दहशत के विचार की पटकथा ‘सत्या-2‘ 


धीरेन्द्र अस्थाना

यह रामगोपाल वर्मा की सुपरहिट फिल्म ‘सत्या‘ का सीक्वेल नहीं है। लेकिन फिल्म के अंत में हुई कुछ सूचनाओं के अनुसार जब ‘सत्या-3‘ बनेगी तो वह निश्चित तौर पर ‘सत्या-2‘ का सीक्वेल होगी। ‘सत्या-2‘ में रामगोपाल वर्मा एक नया विचार लेकर आये हैं। विचार यह कि दाउद, छोटा राजन, अबु सलेम वगैरह की गलती यह थी कि वह अपना नाम चमकाने के चक्कर में शासन-प्रशासन की नजरों में आ गये। ‘सत्या-2‘ का मास्टर माइंड सत्या (नया एक्टर पुनीत सिंह रत्न) नाम और चेहरा विहीन कंपनी बनाता है। इस कंपनी के सदस्यों में फायनेंस एक्सपर्ट, पुलिसकर्मी, सुरक्षाकर्मी, छात्र, भाजी बेचने वाले, फल बेचने वाले, शूटर, कुली आदि सब तरह के लोग शामिल हैं। किसी को नहीं पता कि वह किसके लिए काम कर रहे हैं मगर अपने काम का उन्हें जरूरत से ज्यादा मेहनताना मिल रहा है। सत्या का मानना है कि कंपनी एक सोच है और कंपनी का प्रोडक्ट ‘डर‘ है। अर्थात् फिल्म ‘सत्या-2‘ दहशत के विचार की पटकथा है। सत्या का मानना है कि ‘पावर‘ उसे दिखाने में नहीं छिपा कर रखने में है। वह एक नये किस्म का अंडरवर्ल्ड बनाना चाहता है जो दिमाग से चलेगा और जिसमें आम जनता की हिस्सेदारी होगी। उन तमाम लोगों की हिस्सेदारी जो किसी न किसी वजह से मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ हैं या उससे नाराज हैं। सत्या अपने इस विचार को लेकर आगे बढ़ता है। उसके आर्थिक सहयोगी हैं मुंबई के चार पांच बड़े अरबपति। इन सबको सत्या ने अपने दिमाग से कुछ बड़े फायदे करवाये हैं। जब कंपनी का गठन हो जाता है तो सत्या एक साथ मुंबई के पुलिस कमिश्नर, बड़े उद्योगपति, एक तेज तर्रार नेता और एक बड़े टीवी चैनल के मालिक का मर्डर करवाता है। इसे वह अपनी कंपनी का उद्घाटन और ऐलान बताता है। इस चेहरा विहीन कंपनी से शहर और प्रशासन दहल जाता है। नये अंडरवर्ल्ड का यह विचार अगर रामू ने कुछ मंजे हुए कलाकारों को साथ लेकर पर्दे पर उतारा होता तो शायद सिनेमा में उनके करिश्मे की वापसी हो जाती। मगर अफसोस कि फिल्म में सहयोगी कलाकारों ने जितना अच्छा काम किया है उतना फिल्म के लीड आर्टिस्ट नहीं कर पाये हैं। पूरी फिल्म एक्टिंग के मोर्चे पर मार खा गयी है। मसलन फिल्म का हीरो पुनीत सिंह रत्न हमेशा अपने चेहरे पर नाराजगी का भाव ओढ़े रखता है तो हीरोईन हरदम चुलबुली बनी फुदकती रहती है। इन दोनों के प्रेम दृश्य और डांस सीक्वेंस बनावटी लगते हैं और रोमांस का अहसास नहीं जगा पाते। हीरो का लुक, बॉडी लैंग्वेज और शारीरिक गठन कहीं से भी ‘डॉन‘ का भान नहीं कराता। हां, फिल्म की कहानी और उसका फिल्मांकन औसत से अधिक है और इसे एक बार देखा जा सकता है। 
निर्देशक:  रामगोपाल वर्मा
कलाकार:  पुनीत सिंह रत्न, अनाईका सोटी, महेश ठाकुर, आराधना गुप्ता, राज प्रेमी
संगीत:  संजीव-दर्शन, नितिन रायकर, श्री डी



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