Monday, September 30, 2013

चेन्नई एक्सप्रेस

फिल्म समीक्षा

कॉमेडी और रोमांस की चेन्नई एक्सप्रेस

धीरेन्द्र अस्थाना

पता नहीं क्यों मगर सच यही है कि शाहरुख खान जैसे बड़े और संवेदनशील एक्टर के साथ फिल्म बनानी हो तो एक कायदे की कहानी का होना अनिवार्य है। कल हो न हो, मैं हूं न, वीर जारा, माई नेम इज खान या फिर दीपिका पादुकोन के ही साथ ओम शांति ओम दर्जनों ऐसी फिल्में हैं, जिनमें कहानी के कारण शाहरुख अभिनय का एक से बढ़कर एक उम्दा ककहरा लिखते आये हैं। मगर एक्शन और कॉमेडी के मास्टर कहे जाने वाले निर्देशक रोहित शेट्टी अपनी नयी फिल्म चेन्नई एक्सप्रेसके जरिए शाहरुख के खाते में एक साधारण फिल्म ही दर्ज कर पाये हैं। द्विभाषी प्रेम की संवेदनापरक कथा को कॉमिक चोला पहनाकर रोहित ने फिल्म की संभावनाओं को सीमित कर दिया। अभी क्या है कि लगभग ढाई घंटे की फिल्म में दर्शक करीब डेढ़ घंटे तक तो हंसता रहता है। पंद्रह-बीस मिनट तक शाहरुख के एक्शन सीन्स को तकता है और अंत में यह सोचता हुआ थियेटर से निकलता है कि शाहरुख खान की फिल्में जिस तरह की होती हैं, यह ठीक वैसी फिल्म तो नहीं है। यह जरूर है कि फिल्म की कहानी समाज के भीतर से ही उठायी गयी है। बचपन में मां-बाप को खो चुका शाहरुख खान अपने दादा-दादी का लाडला पोता है। दादा की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उनकी अस्थियों को रामेश्वरम में विसर्जित किया जाये लेकिन ठीक उसी वक्त अपने दोस्तों के साथ शाहरुख गोवा पिकनिक का प्रोग्राम बना चुका होता है। लेकिन दादा की इच्छा का भी मान रखना है। दोस्त लोग एक मजाकिया सुझाव देते हैं कि अस्थियों की राख गोवा में बहा देंगे। गोवा की नदी का पानी भी तो घूम फिर कर रामेश्वरम ही जाएगा न। तय होता है कि दादी को चकमा देने के लिए शाहरुख चेन्नई एक्सप्रेस में चढ़ेगा लेकिन कर्जत में उतर जायेगा, जहां दोस्त उसका इंतजार करेंगे। कर्जत से सभी लोग गोवा के लिए निकल लेंगे। इसके बाद जैसा कि सभी की जिंदगी में कोई अनहोनी घट जाती है, उसी तरह क्रमशः तेज होती चेन्नई एक्सप्रेस की तरफ भाग कर आती दीपिका पादुकोन को अपने हाथ का सहारा देकर शाहरुख गाड़ी में चढ़ा लेता है। सिर्फ दीपिका को ही नहीं वह दीपिका के पीछे भागते चार गुंडों को भी गाड़ी में उसी तरह चढ़ा लेता है। गाड़ी दीपिका, शाहरुख और उन गुंडों को लेकर दीपिका के पिताजी के गांव पहुंचती है, जहां पिता का आतंक राज चलता है। पिता दूसरे गांव के एक और डॉन तंगा बल्ली (निकितिन धीर) से दीपिका की शादी करना चाहता है, ताकि वह दो गांवों पर निरंकुश राज कर सके। इस प्रतिकूल परिस्थिति में फंस गये शाहरुख खान की जिंदगी का अंत में क्या बनता है, यह जानने के लिए फिल्म देख लें। दक्षिण की लड़की के किरदार में दीपिका ने कमाल का काम किया है। फिल्म का गीत- संगीत प्रभावशाली है। 

निर्देशक: रोहित शेट्टी 
कलाकार: शाहरुख खान, दीपिका पादुकोन, सत्याराज 
संगीत: विशाल-शेखर
10 अगस्‍त 2013






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