फिल्म समीक्षा
प्रयोगधर्मी लेकिन जटिल ‘7 खून माफ’
धीरेन्द्र अस्थाना
यूं तो विशाल भारद्वाज की फिल्में आम तौर पर प्रयोगधर्मी ही होती हैं, लेकिन वे मनोरंजक और स्पष्ट भी होती हैं। मगर इस बार उनकी फिल्म संरचना के स्तर पर बेहद जटिल हो गयी है। सिनेमा का जो बड़ा आम दर्शक वर्ग है और जिसे बॉक्स ऑफिस का माई-बाप कहा जाता है, उसे यह फिल्म शायद पसंद नहीं आयेगी। इस फिल्म को समझना और फिर पचाना बहुत आसान नहीं है। यह हिंदी के किसी अमूर्त और कठिन लेखक की दुर्बोध कहानी जैसी हो गयी है। अगर फिल्म का संदेश यह है कि पुरुषों की सामंतवादी सोच के विरुद्ध यह प्रियंका चोपड़ा का खूनी इंतकाम है तो यह संदेश ठीक से घटित नहीं होता। कारण कि कभी कभी प्रियंका कत्ल में मजा लेती दिखती है जो हिंसक प्रतिशोध का नहीं बीमार मानसिकता का प्रतीक बनता नजर आता है। पूरी फिल्म में प्रियंका छह पतियों का खून करती है। वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता कि कोई छह छह खून करने के बाद भी पुलिस के हत्थे न चढ़े। मान लेते हैं कि यह फिल्म है। और इसमें ‘क्रियेटिव लिबर्टी’ लेने की गुंजाइश है, लेकिन खून जैसे सबसे बड़े जुर्म के पीछे कुछ भारी और विश्वसनीय कारण तो होने ही चाहिए थे। प्रियंका के रूसी पति का दोष तो सिर्फ इतना होता है कि वह ‘चीटर’ है। ‘चीटिंग’ की सजा ‘र्मडर’ नहीं हो सकती। एक बात और समझ नहीं आयी। अगर प्रियंका ने अपने छह पतियों का खून इसलिए किया चूंकि वह उनके दमन, अत्याचार, धोखेबाजी और जालसाजी से परेशान थी तो सातवां खून वह खुद अपना क्यों करती है? हिंसा का जवाब प्रति हिंसा से देने वाला कभी अपराधबोध से पीड़ित नहीं होता। प्रियंका क्यों होती है? जटिल होने के कारण एक ज्वलंत विमर्श अमूर्तन की खाई में फिसल गया है। इसमें शक नहीं कि इस फिल्म के लिए प्रियंका चोपड़ा को ढेर सारे अवार्ड मिलने वाले हैं। उसने अपने अब तक के करियर का सर्वाधिक विलक्षण अभिनय किया है। प्रियंका के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव छोड़ा है उसके पहले पति नील नितिन मुकेश ने। एक नाजुक मिजाज शायर बिस्तर पर कितना बर्बर हो जाता है, यह चरित्र इरफान खान ने बहुत ऊंचाई पर ले जाकर निभाया है। प्रियंका और इरफान के रिश्तों में पसरी हिंसा से दर्शक सहम जाते हैं। नसीरुद्दीन शाह और अन्नू कपूर तो मंजे हुए एक्टर हैं लेकिन गायिका होने के बावजूद ऊषा उथुप ने बेहद सहज और जीवंत रोल किया है। वह फिल्म में प्रियंका की वफादार ‘मेड’ बनी हैं। फिल्म का संगीत भी विशाल भारद्वाज का है, जो बेहद प्रभावशाली है। फिल्म का ‘डार्लिंग डार्लिंग’ वाला गाना तो बहुत पहले से ही पॉपुलर हो चुका है। प्रतिभाशाली जॉन अब्राहम का ‘स्पेस’ सबसे कम है। उन्हें कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। एक्सपेरिमेंटल फिल्में पसंद करने वाले दर्शक इसे अवश्य ही देख लें।
निर्देशक: विशाल भारद्वाज
कलाकार: प्रियंका चोपड़ा, जॉन अब्राहम, नील नितिन मुकेश, नसीरुद्दीन शाह, अन्नू कपूर।
संगीत: विशाल भारद्वाज
Saturday, February 19, 2011
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