फिल्म समीक्षा
जिंदगी ‘ब्रेक के बाद‘
धीरेन्द्र अस्थाना
नये समय की प्रोफेशनल, बिंदास, क्षण में जीने वाली खुशमिजाज युवा पीढ़ी को देखकर तो कतई नहीं लगता कि वह दीपिका पादुकोन की तरह उलझी हुई, कन्फ्यूज्ड और हताश है। निर्माता कुणाल कोहली की फिल्म ’ब्रेक के बाद‘ में आलिया (दीपिका पादुकोन) का चरित्र ऐसा ही है। दीपिका के बरक्स इमरान खान का चरित्र ज्यादा सहज, तार्किक और विश्वसनीय लगता है। फिल्म की कहानी चूंकि जीवन से नहीं उठायी गयी है इसलिए दर्शकों के गले से नीचे भी नहीं उतरती है। अनेक युवा दर्शक सिनेमा हाल में बैठे कह रहे थे-ऐसा नहीं होता बॉस। निर्देशक दानिश असलम की दुविधा पूरी फिल्म में पग-पग पर दिखाई पड़ती है। वह शायद खुद को ही यह नहीं समझा पाये कि फिल्म में वह कहना क्या चाहते हैं? इसलिए दर्शक भी नहीं समझ पाये कि वह कोई लव स्टोरी देख रहे हैं या संबंधों के विखंडन पर कुछ पढ़ रहे हैं? यह नयी पीढ़ी का प्यार को लेकर कोई असमंजस है या नया पाठ? यह रिश्तों से पलायन है या करियर को लेकर कन्फ्यूजन? ‘ब्रेक के बाद‘ में कुछ भी स्थापित और परिभाषित नहीं होता। फिल्म को केवल और केवल दीपिका पादुकोन के अभिनय और प्रसून जोशी के ताजगी भरे गीतों के लिए देखा जा सकता है। संगीत के दीवानों को प्रसून जोशी के रूप में नये समय का गुलजार मिला है। विशाल-शेखर का संगीत भी भावप्रवण है। इमरान खान अच्छे लगते हैं, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनकी संवाद अदायगी, हाव-भाव, बॉडी लैंग्वेज उनकी पहली फिल्म ’जाने तू या जाने ना‘ पर ही ठहरी हुई है। आगे जाना है तो उन्हें ग्रो करना होगा जैसे उनके कई समकालीन युवा सितारे कर रहे हैं। दीपिका पादुकोन जरूर अपनी प्रत्येक नयी फिल्म में कदम दर कदम आगे बढ़ रही हैं। जैसा चरित्र उन्हें दिया गया है उसके साथ उन्होंने न्याय किया है। वह दीपिका न रहकर आलिया खान ही हो जाती हैं। अभिनय के पाठ में इसे ही कायांतरण कहा जाता है। अपनी जिद और चाहत के सामने सब कुछ को तुच्छ और द्वितीय मानने वाली भ्रमित लड़की का रोल उन्होंने पूरी शिद्दत से अदा किया है। लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता कि ’ब्रेक के बाद‘ भी इतनी आसानी से रिश्ते विवाह में बदल जाएं। कहीं-कहीं पर फिल्म में ’लव आज कल‘ के चिराग भी टिमटिमाते हैं। उसमे भी दीपिका थी लेकिन वह ज्यादा विश्वसनीय और परिपक्व फिल्म थी। अगर ’ब्रेक के बाद‘ में फोकस सिर्फ करियर और प्यार के द्वंद पर केंद्रित रखा जाता तो कुछ अलग ही निकल कर आ सकता था- नये समय का सच।
निर्देशक: दानिश असलम
कलाकार: इमरान खान, दीपिका पादुकोन, शर्मीला टैगोर, नवीन निश्चल, शहाना गोस्वामी, युधिष्ठर उर्स
गीत: प्रसून जोशी, विशाल डडलानी
संगीत: विशाल-शेखर
Saturday, November 27, 2010
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sankshipt aur sundar
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