फिल्म समीक्षा
जिंदगी से जंग की ’गुजारिश‘
धीरेन्द्र अस्थाना
अगर कोई सिने प्रेमी किसी कारणवश यह फिल्म नहीं देखता है तो वह एक अविस्मरणीय सिनेमाई अनुभव से वंचित रह जाएगा। संजय लीला भंसाली के अब तक के सिनेमाई करियर का यह सबसे मजबूत और चमकदार मील का पत्थर है। हर कलाकृति बाजार का भी ताज बने यह जरूरी नहीं है, लेकिन कोई कृति जब अपने क्षेत्र की मिसाल बन जाए तो अद्वितीय कहलाती है। ’गुजारिश‘ एक अद्वितीय फिल्म है और ऋतिक रोशन ने फिल्म में अपने बहुआयामी तथा संवेदनशील अभिनय से एक जादुई लोक का निर्माण कर दिया है। इतनी कम उम्र में ऋतिक ने इतना अधिक विस्मयकारी अभिनय कर हतप्रभ कर दिया है। अगर अमिताभ बच्चन अभिनय की पाठशाला हैं तो इस फिल्म के बाद ऋतिक रोशन अभिनय का अनिवार्य पाठ बन गये हैं। जादू ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी जगाया है। सिर्फ अपनी आंखों और भाव भंगिमा से ऐश ने पूरी फिल्म को ही परिभाषित कर दिया है। अगर अगले वर्ष तमाम बड़े पुरस्कार ’गुजारिश‘ के लिए घोषित हों तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभिनय, तकनीक, सिनेमेटोग्राफी, गीत, संगीत, कोरियोग्राफी, पटकथा, कथा, संवाद, संपादन प्रत्येक मोर्चे पर ‘गुजारिश‘ एक सशक्त तथा मुकम्मल फिल्म है जो जिंदगी से टूटकर मोहब्बत करने की अपील करती है। अगर जिंदगी का नाम एक ’चौतरफा अंधकार‘ है तो यह फिल्म जिंदगी से जंग करने की ’गुजारिश‘ करती है। इसके बावजूद कि अपनी नारकीय बीमारी से त्रस्त होकर ऋतिक कोर्ट से इच्छा मृत्यु की अपील करता है, फिल्म का अंतिम संदेश यही है कि जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है। इस जिंदगी से सिर्फ और सिर्फ प्यार करो। यह एक ऐसे अद्भुत जादूगर की कहानी है जो अपनी शोहरत और वैभव के शिखर पर एक षड्यंत्रकारी दुर्घटना का शिकार हो अपाहिज हो जाता है। अपनी दुखद जिंदगी के इस बोझिल समय में उसके साथ सिर्फ तीन चार लोग रह जाते हैं। एक नर्स ऐश्वर्या राय बच्चन, एक वकील शेरनाज पटेल, एक डॉक्टर सुहेल सेठ और बाद में जादू सीखने का इच्छुक एक शागिर्द आदित्य राय कपूर। इन चार लोगों के साथ एक चार बाई छह के बिस्तर पर बारह साल गुजारने वाले शख्स की कारुणिक कहानी को इतना विराट कैनवास देकर संजय लीला भंसाली ने करिश्मा कर दिया है। एक साफ सुथरी, तार्किक, मार्मिक और सहज फिल्म है ’गुजारिश‘ जो जिंदगी के साज पर प्यार का नगमा छेड़ती है। अवश्य देखें।
निर्देशन: संजय लीला भंसाली
कलाकार: ऋतिक रोशन, ऐश्वर्या राय, आदित्य राय कपूर, शेरनाज पटेल, सुहेल सेठ
गीत: एएम तुराज, विभु पुरी
संगीत: संजय लीला भंसाली
Saturday, November 20, 2010
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आपने इस फ़िल्म की बेहद तारीफ की है, मगर फिर भी ये बॉक्स ऑफ़िस पर डब्बा क्यों हो गई? इस पर भी प्रकाश डालें तो ज्यादा अच्छा होगा.
ReplyDeleteक्या फ़िल्म में बहुत सी जगह भयंकर बोरियत नहीं थी?