फिल्म समीक्षा
कश्मीर के वजूद पर विमर्श: लम्हा
धीरेन्द्र अस्थाना
यकीन तो था कि निर्देशन राहुल ढोलकिया का है इसलिए ‘लम्हा‘ अर्थपूर्ण फिल्म होगी, जो कि वह है। फिल्म ‘परजानिया‘ के निर्देशन से राहुल ढोलकिया को विश्व पर्दे की नागरिकता मिली थी। ‘लम्हा‘ में भी उन्होंने निराश नहीं किया। कश्मीर के वजूद पर एक सार्थक विमर्श पेश करने में वह सफल हुए हैं। कश्मीर को लेकर उन्होंने कुछ जलते सवाल हवा में उछाले हैं जिनका जवाब अमन और तरक्की पसंद अवाम को खोजना है। सियासत इन सवालों को उलझाती आयी है और उलझाती रहेगी क्योंकि कश्मीर सुलगता रहेगा तो सियासत का चूल्हा भी दहकता रहेगा। कश्मीर की आग ही सियासत का ईंधन है। कश्मीर एक अनसुलझा समीकरण है, कश्मीर एक कंपनी है, कश्मीर जन्नत और जहन्नुम के बीच ठिठका एक खौफनाक लम्हा है। कश्मीर की बरबादी में सब शामिल हैं, सब शामिल हैं, सब शामिल हैं - यह संदेश दिया है राहुल ढोलकिया ने। इस संदेश के संवाहक बने हैं संजय दत्त, कुणाल कपूर और बिपाशा बसु। संजय एक परिपक्व और समर्थ अभिनेता हैं। उनका काम वजनदार और सहज है। लेकिन बिपाशा बसु ने तो कमाल कर दिया है। एक ग्लैमरस गुड़िया इतना संजीदा और आॅफ बीट रोल इतने जीवंत ढंग से अदा करेगी, सोचा न था। एक बंगाली बाला होने के बावजूद कश्मीर की एक विद्रोही लड़की अजीजा का किरदार उन्होंने बेहद विश्वसनीय ढंग से निभाया है। जब वह संजय दत्त से कहती हैं -‘आंखों में जो गुस्सा है वह हर कश्मीरी लड़की को विरासत में मिलता है‘ तो पर्दे पर बिपाशा नहीं अजीजा ही दिखती है। हथियार फेंक कर चुनाव में उतरने वाले लोकप्रिय युवा नेता के रूप में कुणाल कपूर ने भी सशक्त अभिनय किया है। ‘लम्हा‘ में जो मौजूदा कश्मीर देखने को मिलता है उसे देख वह जन्नत बिल्कुल याद नहीं आती जो कश्मीर के नाम पर प्रचारित है। यह तो बहुत बदहाल, जर्जर और आतंक के साये में जीता शहर है जो सपने में डर की तरह उतरता है। इस डर पर एक नयी जगह खड़े होकर रोशनी डाली है राहुल ढोलकिया ने। संभवतः यह पहली हिंदी फिल्म है जिसमें कश्मीर की जामा मस्जिद में अदा की गयी नमाज का फिल्मांकन हुआ है। फिल्म का गीत-संगीत फिल्म की कहानी और पृष्ठभूमि के अनुकूल है। सबसे ताकतवर हैं फिल्म के संवाद। कुणाल कपूर का मात्र एक संवाद ‘कश्मीर में कोई सियासत नहीं छोड़ता‘ पूरी फिल्म का आख्यान बन जाता है।
निर्माता: बंटी वालिया
निर्देशक: राहुल ढोलकिया
कलाकार: संजय दत्त, बिपाशा बसु, कुणाल कपूर, अनुपम खेर, यशपाल शर्मा, महेश मांजरेकर, राजेश खेरा, एहसान खान
संगीत: मिठुन
Saturday, July 17, 2010
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बहुत बढ़िया समीक्षा... बधाई
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