Saturday, January 19, 2013

इंकार


फिल्म समीक्षा

रिश्तों में महत्वाकांक्षा की सेंध: इंकार

धीरेन्द्र अस्थाना


यह निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म है। यह मनोरंजन नहीं चिंतन प्रधान फिल्म है। चिंतन भी नये समय के स्त्री-पुरुष संबंधों पर। यह दफ्तर में यौन शोषण की फिल्म नहीं है जैसा कि प्रचारित किया गया है। यह दो क्रिएटिव लोगों के पास आने, जुड़ने, टूटने और फिर जुड़ने की कोशिश करने वाली विमर्श केंद्रित फिल्म है जो स्त्री पुरुष संबंधों पर लंबे समय से चलती आ रही बहस को नये कामकाजी समय में नये ढंग से उठाती है। फिल्म के दोनों मुख्य चरित्रों अर्जुन रामपाल और चित्रांगदा सिंह ने श्रेष्ठ और यादगार अभिनय किया है। अर्जुन एक विज्ञापन एजेंसी का सीईओ है जो कंपनी में हिमाचल के एक छोटे से शहर सोलन की लड़की को स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर नियुक्त करता है। उसे लगता है कि चित्रांगदा की हर तरक्की की नींव में उसका श्रम खड़ा है जब कि चित्रांगदा समझती है कि तरक्की का प्रत्येक पायदान उसने अपनी प्रतिभा के दम पर चढ़ा है। वह मामूली लेखिका से इस अंतरराष्ट्रीय कंपनी की नेशनल क्रिएटिव डायरेक्टर बन जाती है। इसके बाद शुरू होता है रिश्तों में द्वंद्व। दोनों की महत्वाकांक्षाएं टकराने लगती हैं और अंतत महत्वाकांक्षा संबंधों की गर्माहट को लील जाती है। प्यार में सेंध लग जाती है। चित्रांगदा अर्जुन को सबक सिखाने के लिए उस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगा देती है जिस पर कंपनी के बंद कमरे में सुनवाई चलती है। यह कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म का सबसे नीरस पक्ष है क्योंकि इतनी बोरिंग और लंबी बहस देखना बौद्धिक लोग भी पसंद नहीं करेंगे। इस कोर्ट रूम ड्रामे को सांकेतिक और संक्षिप्त रख कर फिल्म को घटनात्मक बनाना चाहिए था। जांच में कोई नतीजा नहीं निकलता इसलिए मैनेजमेंट अपनी तरफ से फैसले के लिए बैठता है। मगर तब तक अर्जुन रामपाल इस्तीफा देकर अपने शहर सहारनपुर के लिए निकल पड़ता है यह मेल भेजकर कि इतनी बेइज्जती के बाद काम करने का कोई औचित्य नहीं है। कंपनी चित्रांगदा को बुलाती है लेकिन वह भी गायब है। उसका मोबाइल डस्टबिन में पड़ा है। फिल्म के अंत में एक झगड़े के दौरान चित्रांगदा, अर्जुन से पूछती है क्या अब भी हम दोनों के बीच कुछ मुमकिन है। यह इस बात का संकेत है कि दोनों फिर से जुड़ने के लिए निकल पड़े हैं। एक संवेदनशील विषय पर नाजुक फिल्म है जो सिनेमा का पाठ तो बन सकती है बॉक्स ऑफिस का ठाठ नहीं। 


निर्देशक: सुधीर मिश्रा
कलाकार: अर्जुन रामपाल, चित्रांगदा सिंह, दीप्ति नवल, रेहाना सुल्तान
संगीत: शांतनु मोईत्रा

1 comment:

  1. फिर भी उम्मीद की जा सकती है कि यह फिल्म बॉक्स ऑफ़िस पर भी
    कुछ अच्छा ही करेगी। सुधीर मिश्र जी का दिग्दर्शन भी अच्छा ही होगा
    और अर्जुन रामपाल और चित्रांगदा को तो देखने लोग और खासकर प्रबुद्ध
    वर्ग के लोग ज़रूर जाएंगे ...वास्तविक पृष्ठभूमि और कहानी वाली फिल्मों
    के लिए यह अच्छा समय चल रहा है क्योंकि लोगों में कुछ नया, कुछ
    हमारी ज़िंदगी जैसा और आजकल ज़िंदगी में और ज़िंदगी के आसपास जो
    कुछ घट रहा है उसे देखने की ललक जागी है ...

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