फिल्म समीक्षा
बचकानी ’चतुर सिंह टू स्टार‘
धीरेन्द्र अस्थाना
बनी तो बीसियों होंगी लेकिन इस लेखक को याद नहीं आता कि उसने अपनी कुल जिंदगी में कोई इतनी बचकानी फिल्म कभी देखी होगी। ऐसा भी लगता है कि शायद यह फिल्म बहुत पुरानी है जो अब जाकर रिलीज हो पायी है। वरना तो संजय दत्त के खाते में एक से एक बेहतरीन फिल्में दर्ज हैं। एक्शन भी, कॉमेडी भी, संजीदा भी। आश्चर्य है कि कॉमेडी के नाम पर क्या क्या बनाया जा रहा है और पैसे को पानी में डाला जा रहा है। निर्देशक अजय चंडोक को फिल्म में काम करने के लिए संजय दत्त, अनुपम खेर, सतीश कौशिक, मुरली शर्मा, अमीषा पटेल, गुलशन ग्रोवर जैसे मंजे हुए कलाकार मिले थे, लेकिन वह एक भी कलाकार से अच्छा काम नहीं करवा सके। कॉमेडी के नाम पर विदूषकों की टोली बना डाली उन्होंने। यह टोली अपनी बचकानी हरकतों से एक वाहियात सी कहानी को फॉलो करती हुई एक बेतुके और फूहड़ से अंत पर पहुंचती है। न फिल्म के संवाद दिल को गुदगुदाते हैं और न ही नाच गाने प्रभावित करते हैं। अमीषा पटेल से निर्देशक ने दिल खोल कर देह प्रदर्शन करवाया है। लेकिन इंटरनेट और एक से एक खतरनाक वेबसाइटों के जमाने में अमीषा पटेल का देह प्रदर्शन देखने तो दर्शक सिनेमा हॉल में जाने से रहे। दर्शकों को बांधे रखने वाली कोई एक बात तो फिल्म में होती। शायद इसीलिए जो भी 8-10 दर्शक फिल्म देखने आए थे वे बार-बार उठ कर बाहर जा रहे थे। निर्देशक ने इतना भी नहीं सोचा कि पूरे के पूरे पुलिस महकमे को जोकरों जैसा चित्रित करके वह कोई तीर नहीं मार रहे हैं। संजय दत्त एक जासूस है जो जासूसी कम जोकरी ज्यादा करता है। एक र्मडर मिस्ट्री सुलझाने साउथ अफ्रीका जाता है। इस र्मडर के पीछे बेशकीमती हीरों की चोरी की कहानी है। जिस गैंगस्टर पर शक है उसकी याद्दाश्त चली गयी है, इसलिए वह भी जोकर बन गया है। उसे पीट पीटकर उसकी याद्दाश्त वापस लायी जाती है। फिर उसका पीछा करके हीरे हड़प लिए जाते हैं। मर्डर मिस्ट्री सॉल्व हो जाती है, क्योंकि जिसका मर्डर हुआ है उसकी पत्नी साउथ अफ्रीका में प्रकट होकर बताती है कि मर्डर उसने किया है। क्या क्या सोचते और बनाते हैं लोग।
निर्देशक: अजय चंडोक
कलाकार: संजय दत्त, अमीषा पटेल, अनुपम खेर, सतीश कौशिक, गुलशन ग्रोवर
संगीत: साजिद-वाजिद
गीत: जलीस शेरवानी
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pata nahi aisi filemein bana kaise lete hai
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