Saturday, June 18, 2011

भेजा फ्राई

भेजा फ्राई से भेजा गायब
धीरेन्द्र अस्थाना

जिन दर्शकों ने कुछ वर्ष पहले सागर बेल्लारी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भेजा फ्राई’ देखी होगी, भेजा फ्राई-टू देखकर उनका भेजा तड़क जाएगा। पहली बात तो यह कि यह फिल्म ‘भेजा फ्राई’का सीक्वेंस नहीं है इसलिए इसका नाम ‘भेजा फ्राई-टू’ ही गलत है। पिछली फिल्म की अपार लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए नाम दोहराया गया है। शुरू के दिनों में दर्शक नाम के झांसे में आ भी सकते हैं। दूसरी बात यह कि ‘भेजा फ्राई’ में एक छोटी सी, प्यारी सी ऐसी कहानी थी जिसे लिखने में दिमाग का इस्तेमाल हुआ था। लेकिन ‘भेजा फ्राई-टू’ से भेजा ही गायब है। यह एक ऐसी कॉमेडी फिल्म हैजिस पर निरंतर रोते रहने का मन करता है। पता नहीं क्या सोचकर सागर बेल्लारी की टीम ने इस फिल्म पर काम किया। केके मेनन अतीत में बेहद शानदार फिल्में कर चुके हैं। कॉमेडी उनका क्षेत्र नहीं है क्योकि एक स्वाभाविक संजीदगी उनके व्यक्तित्व का स्थायी भाव है। कह सकते हैं कि कॉमेडी उनकी बॉडी लैंग्वेज के साथ छत्तीस का रिश्ता रखती है। विनय पाठक अपने फॉर्म में थे और पूरी फिल्म का केन्द्र बिंदु भी वही हैं लेकिन अकेला आदमी दर्शकों को कितनी देर तक उलझाये रख सकता है वह भी एक ऐसी फिल्म में जिसमे कथा के नाम भर लगभग शून्य हों। रियल लाइफ में कौन बिजनेस टायकून किसी इनकम टैक्स इंस्पेक्टर से इतना डरता है जितना केके को विनय पाठक से डरता दिखाया गया है। रियलिटी शो ‘आओ गेस करें’
में विनर बन कर विनय पाठक एक क्रूज पर पहुंचते हैं जहां केके ऐंड पार्टी का जश्न हो रहा है। विनय पाठक चूंकि पेशे से इनकम टैक्स इंस्पेक्टर हैं इसलिए केके उन्हें क्रूज से धक्का देने के प्रयत्न में खुद समुद्र में गिर जाते हैं। बाद में केके का सिक्युरिटी पर्सन विनय को भी समुद्र में फेंक देता है। दोनों एक निर्जन टापू पर साथ साथ हैं जहां संवादों के जरिए दर्शकों को हंसाने का प्रयत्न किया जाता है। टापू पर उन्हें अमोल गुप्ते का घर मिल जाता है। जो एकाकी जीवन जी रहा है। यहां भी कुछ बेतुकी घटनाओं के जरिए हास्य पैदा करने की कोशिश की गयी है जो बोर करती है। एक लम्बे, बोझिल घटनाक्रम के बाद अमोल के घरमेंबम फटता है और सब बेहोश हो जाते हैं। होश में आने पर पहले केके अपने लोगों के साथ और बाद में विनय पाठक अपने सहयोगी इंस्पेक्टर सुरेश मेनन के साथ टापू से विदा लेते हैं और मिनीषा लांबा? वह इस पिक्चर में क्यो थीं, वह खुद उन्हें ही समझ नहीं आया होगा।
निर्देशक : सागर बेल्लारी कलाकार : विनय पाठक, केके मेनन, अमोल गुप्ते, सुरेश मेनन, मिनीषा लांबा, वीरेन्द्र सक्सेना संगीत : इश्क बेक्टर, स्नेहा खान वालकर, सागर देसाई संवाद : शरद करारिया

No comments:

Post a Comment