फिल्म समीक्षा
बेहतर से थोड़ा कम: दम मारो दम
धीरेन्द्र अस्थाना
आज कल एक फिल्म के भीतर तीन चार कहानियां कहने का जो चलन है उसी की एक मिसाल ‘दम मारो दम‘ भी है। साल में तीन सौ पैंसठ दिन छुट्टी पर रहने वाले गोवा के ड्रग माफिया पर आधारित रोहन सिप्पी की यह फिल्म स्टाइलिश तो है, लेकिन अंत तक आते-आते कहानी के स्तर पर बिखर जाती है। फिल्म के अंत में अभिषेक बच्चन का मर्डर दिखाने की जरा भी जरूरत नहीं थी। अभिषेक का मरना फिल्म के उद्देश्य और संदेश को कमजोर करता है। ड्रग माफिया के लौह शिकंजे को ध्वस्त कर देने वाले एक जांबाज पुलिस ऑफिसर की मौत बुराई पर अच्छाई की विजय वाले फंडे को शिथिल कर देती है। पूरी तरह कमर्शियल फिल्म है और अभिषेक बच्चन समेत सभी कलाकारों ने अपना बेहतर देने का प्रयत्न भी किया है, लेकिन कहानी में कोई नयापन न होने के कारण बांध नहीं पाती। वरिष्ठ अदाकार देव आनंद की फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ के अमर गाने ‘दम मारो दम‘ का रीमिक्स प्रभावित नहीं करता। हां उसकी फिल्मिंग बेहद उम्दा और प्रभावशाली बन पड़ी है। इस गाने पर दीपिका पादुकोन का डांस मदमस्त है। ड्रग माफिया की कहानी पर दर्शक बीसियों फिल्में देख चुके हैं। कथ्य के स्तर पर कोई नया आयाम या अर्थ देकर फिल्म को नया अंदाज दिया जाता तो कुछ कमाल हो सकता था। अपनी ऊंची-ऊंची महत्वाकांक्षाओं के कारण अपने हंसते खेलते जीवन को नर्क बना लेने वाली युवती के रोल को बिपाशा बसु ने तार्किक और संवेदनशील परिणति दी है। टीन एज युवा को ड्रग सौदागरों द्वारा कैसे फंसा लिया जाता है, इस मार्मिक कथा को प्रतीक बब्बर ने अपने निर्दोष अभिनय से अच्छी अभिव्यक्ति दी है। युवा संगीतकार के रोल में साउथ के सितारे राणा दग्गू बत्ती भी जंचते हैं। अभिषेक बच्चन का अभिनय तो फिल्म की जान है ही। गोविन्द नामदेव ने अभिनय का सहज पाठ पेश किया है। गीत-संगीत फिल्म का एक मजबूत पक्ष है। फोटोग्राफी लाइव तथा आकर्षक है। संवादों में दम है। ‘दम मारो दम‘ में कुछ बेदम है तो वह है पटकथा। प्रतीक, राणा, बिपाशा, अभिषेक सबकी अलग अलग कहानियां मिलकर कोई एक केंद्रीय विमर्श नहीं बन सकीं। बन जातीं तो यह कोई अलग और बेहतरीन फिल्म होती। कुल मिलाकर देखने लायक फिल्म तो है ही। अपने ट्रीटमेंट में एक ‘युवापन‘ लिए हुए है। रमेश सिप्पी के कैंप से निकली है इसलिए ‘भव्य‘ तो है ही।
निर्देशक: रोहन सिप्पी
कलाकार: अभिषेक बच्चन, बिपाशा बसु, राणा दग्गू बत्ती, प्रतीक बब्बर, गोविन्द नामदेव
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती
गीत: जयदीप साहनी
Saturday, April 23, 2011
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sameeksha behad tarksangat hai.aapkey shabdon ka prabhaav visheh aakarshan detaa hai ....geet sangeet film ka aakarshan kender ho saktey hain kya...
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