Saturday, August 7, 2010

आयशा

फिल्म समीक्षा

हाथ से छूटती फिसलती सी ‘आयशा‘

धीरेन्द्र अस्थाना

प्रेम कहानी होने के बावजूद थोड़ी गंभीर और जटिल किस्म की फिल्म है इसलिए आम दर्शक संभवतः ‘आयशा‘ को देखना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन विशेष अथवा बौद्धिक दर्शकों को भी लीक से हट कर बनी ‘आयशा‘ ट्रीटमेंट के स्तर पर संतुष्ट नहीं करेगी। शुरू से अंत तक हाथ से फिसलती और छूटती सी नजर आती है फिल्म। कह सकते हैं कि एक बेहतरीन, अर्थपूर्ण, कुछ अलग किस्म की कहानी जब बुनावट यानी मेकिंग के स्तर पर लड़खड़ा जाती है तो ‘आयशा‘ जैसी फिल्म बनती है। वरना तो दिल्ली की जिस अमीरजादी, शोख, थोड़ी सी एरोगेंट, ज्यादातर आत्मकेंद्रित और पूरी तरह आत्म मुग्ध लड़की के किरदार में सोनम कपूर को उतारा गया है वह बॉक्स ऑफिस पर गदर मचा सकती थी। इस तरह के चरित्र को ‘नारसिसस‘ कहते हैं। यह चरित्र ग्रीक माइथोलॉजी में मौजूद है और पूरी दुनिया में इस चरित्र के प्रभाव ग्रीक माइथोलॉजी से ही ग्रहण किए गये हैं। यह केवल खुद पर मुग्ध, पूरी तरह पर्फेक्ट, अंतिम सत्य सा ‘तूफान‘ चरित्र होता है जो सोनम कपूर जैसी सॉफ्ट, कम उम्र और दिलकश लड़की पर फिट नहीं बैठता। इस ‘मिसमैच‘ के कारण ही ‘आई हेट लव स्टोरीज‘ की, दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली सोनम ‘आयशा‘ में प्रभावित नहीं कर पाती। लेकिन एक लीक से हटकर उठायी गयी कहानी के जीवंत और जुदा अनुभव से गुजरने के लिए फिल्म को एक बार जरूर ही देखना चाहिए। सवा दो घंटे की फिल्म में कोई हीरोईन शायद इतनी तरह की ड्रेसेज नहीं पहन सकती जितनी सोनम ने पहनी हैं। लड़कियों को तो ड्रेसेज की इतनी अधिक वेरायटीज से गुजरने के लिए भी ‘आयशा‘ देख लेनी चाहिए। फिल्म का कथासार इतना सा है कि रियल लाइफ में दूसरों की जोड़ी मिलाने का शौक रखने वाली सोमन कपूर कैसे अपनी सनक और जिद के चलते क्रमशः अपने दोस्तों को खोती चली जाती है। हिंदी फिल्म है। सुखांत फिल्म बनाना मजबूरी है इसलिए अंत में सोनम को ‘रियलाइज‘ होता है कि वह कितनी गलत थी और इस आत्मस्वीकार के बाद वह अपने ‘प्यार‘ अभय देओल को पा लेती है। दिल्ली के बिंदास, बेफिक्रे, अल्हड़ किरदारों के रूप में अभय देओल, साइरस शौकर, इरा दुबे और अमृता पुरी दिल जीत लेते हैं। सोनम का अभिनय मंजता जा रहा है। वह सहज अभिनय करने की कठिन दिशा में आगे बढ़ रही है। अभय देओल के अभिनय में आत्मविश्वास है तो नयी लड़की अमृता पुरी ने बहादुरगढ़ की पंजाबी कुड़ी के रूप में खुद को ‘मनवा‘ लिया है। गीत-संगीत बेहतरीन है। लंबे समय बाद एम. के. रैना को बड़े पर्दे पर देखना सुखद है।

निर्माता: अनिल कपूर, रिया कपूर
निर्देशक: राजश्री ओझा
कलाकार: अभय देओल, सोनम कपूर, साइरस शौकर, इरा दुबे, अमृता पुरी, एम.के. रैना आदि।
गीत: जावेद अख्तर
संगीत: अमित त्रिवेदी

1 comment:

  1. deep analysis. it is really not easy to give a creative shape to a complex and serios subject. as per your analysis director of Aaisha has fail to do so. that'why I am planning to watch this movie.
    reg
    Ranjit

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