फिल्म समीक्षा
सच की गली में ‘लव, सेक्स और धोखा‘
धीरेन्द्र अस्थाना
आम तौर पर साहित्य आम जनता के लिए नहीं होता। वह जनता के बारे में हो सकता है। लेकिन सिनेमा के लिए यह सिद्धांत आम तौर पर स्वीकृत नहीं है। माना जाता है कि सिनेमा आम दर्शक के मनोरंजन के लिए बनता है। इस मनोरंजन वाले सिनेमा को ही मेनस्ट्रीम या व्यावसायिक सिनेमा कहते हैं। टीवी सीरियल की ‘क्वीन‘ कही जाने वाली एकता कपूर ने जिस फिल्म ‘लव, सेक्स और धोखा‘ का निर्माण किया है, वह व्यावसायिक सिनेमा नहीं है। ऐसी फिल्में सार्थक, अर्थपूर्ण या रियलिटी सिनेमा की श्रेणी में आती हैं। यदि आप सिनेमा में कुछ तलाशने, कुछ पाने, कुछ सोचने के लिए जाते हैं तो तत्काल यह फिल्म देख आइए। आपको इसमें यथार्थवादी सिनेमा का नया आस्वाद मिलेगा। निर्देशक दिबाकर बनर्जी इसमें समकालीनता का नया मुहावरा गढ़ते नजर आते हैं। देश के छोटे बड़े शहरों में रोज घट रही अप्रिय घटनाओं में से कुछ सच्चाइयां उठा कर पर्दे पर हूबहू पेश करने की एकदम नयी शैली अपनाई है निर्देशक ने। यह शैली हमारे सौंदर्यबोध को झटका भी दे सकती है। इस फिल्म को हम ‘डॉक्यू ड्रामा‘ भी कह सकते हैं क्योंकि फिल्म बनाने का स्टाइल ‘डॉक्यूमेंट्री‘ जैसा ही है। फिल्म देखते समय हम उसका एक हिस्सा बन जाते हैं एक पंक्ति में फिल्म को परिभाषित करना हो तो कहेंगे -‘सच की गली में हुआ स्टिंग हैं ऑपरेशन।‘
एक फिल्म में कई कहानियों वाली कई फिल्में पहले भी बन चुकी हैं। इसमें भी तीन कहानियां हैं। पहली फिल्म में राहुल और श्रुति जैसे युवा प्रेमी युगल की परिणति उनकी नृशंस हत्या में होती है। दूसरी फिल्म में, अपने सिर पर चढ़ा कर्ज उतारने के लिए आदर्श पहले रश्मि के साथ प्यार का ड्रामा करता है फिर उसके साथ सेक्स करते समय उसकी फिल्म बना लेता है। बाद में इस फिल्म को बेच कर वह अपना कर्जा उतार देता है। तीसरी फिल्म में मुख्यतः तीन पात्र हैं। पत्रकार प्रभात, डांसर नैना और पाॅप सिंगर लोकी लोकल। इस फिल्म में ग्लैमर की दुनिया में चल रहे यौन शोषण का ‘स्टिंग ऑपरेशन‘ किया गया है। उद्देश्य सिर्फ अपने चैनल की टीआरपी बढ़ा कर पैसा कमाना है। स्टिंग हैं ऑपरेशन के दौरान पत्रकार प्रभात पॉप सिंगर की गोली का शिकार बन जाता है। फिर वह चैनल की मालकिन को हैं ऑपरेशन का वीडियो फुटेज देने से इनकार कर देता है। इन तीनों फिल्मों के समाप्त हो जाने के बाद फिल्म के सभी पात्र प्रोड्यूसर के घर पर इकट्ठा होते हैं। फिल्म के ‘टाइटल सांग‘ के फिल्मांकन पर फिल्म खत्म होती है। एक नितांत प्रयोगधर्मी फिल्म है जिसके सातों मुख्य चरित्र नये हैं। आदर्श और रश्मि के किरदार में राजकुमार यादव और नेहा चैहान ने जीवंत अभिनय किया है।
निर्देशक: दिबाकर बनर्जी
कलाकार: अंशुमान झा, श्रुति, राजकुमार यादव, नेहा चैहान, आर्या देवदत्ता, हैरी टेंगरी, अमित सयाल
संगीत: स्नेहा खानवलकर
Saturday, March 20, 2010
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